आरसीपी सिंह: IAS अधिकारी से सीएम के नंबर 2, फिर केंद्रीय मंत्री, अब कहीं नहीं
पटना (TBN – The Bihar Now डेस्क)| जुलाई में पूर्व आईएएस व जदयू नेता आरसीपी सिंह (R C P Singh) अपनी राज्यसभा सदस्यता से सेवानिवृत्त हो जाएंगे. उसके बाद संभवत: वे केंद्रीय इस्पात मंत्रालय (Union Steel Ministry) के पोर्टफोलियो को भी खो देंगे, जो वर्तमान में उनके पास है. यह एक नेता, जो जद (यू) पार्टी के अंदर काफी तेजी से आगे बढ़ा, के लिए सम्मान खोने जैसा है.
रविवार को जद (यू) और सहयोगी भाजपा ने बिहार से अपने राज्यसभा नामांकन की घोषणा की. इन दोनों पार्टियों के लिस्ट में आरसीपी सिंह का नाम किसी भी पार्टी की सूची में नहीं था. नामांकन की दौड़ में ऐसी अटकलें लगाई जा रही थीं कि 63 वर्षीय सिंह को, जिनके बारे में माना जाता है कि उनका जद (यू) सुप्रीमो नीतीश कुमार (JD-U supremo Nitish Kumar) के साथ मतभेद हो गया था, भाजपा से टिकट मिल जाएगा.
हाल के दिनों में जद (यू) और भाजपा के बीच तनावपूर्ण संबंधों के बीच ऐसा प्रतीत होता है कि भाजपा ने नीतीश कुमार का पक्ष लेने का अधिक व्यावहारिक कदम उठाने का फैसला किया है. इसी कारण बीजेपी ने आरसीपी सिंह को टिकट नहीं दिया.
दो बार के जद (यू) के राज्यसभा सांसद, आरसीपी सिंह – या रामचंद्र प्रसाद सिंह – ने लो प्रोफाइल रखते हुए नीतीश के करीबी हलकों में अपनी जगह बनाई थी. पटना में पर्यवेक्षकों को उनके पहले मुखर होने का एकमात्र उदाहरण तब याद आता है जब चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर (Political Strategist Prashant Kishor) ने नीतीश को वास्तव में नंबर दो के रूप में अपने अधिकार को चुनौती दी थी.
उत्तर प्रदेश-कैडर के आईएएस अधिकारी, आरसीपी सिंह पहली बार नीतीश के संपर्क में आए थे, जब उन्हें 1996 में तत्कालीन केंद्रीय मंत्री बेनी प्रसाद वर्मा (Beni Prasad Verma) के निजी सचिव के रूप में तैनात किया गया था. कहा जाता है कि नीतीश और आरसीपी सिंह इस कारण करीब आ गए थे क्योंकि दोनों बिहार के नालंदा जिले से आते हैं. साथ ही बेनी प्रसाद वर्मा की तरह दोनों कुर्मी थे. साथ ही, कहा जाता है कि एक नौकरशाह के रूप में आरसीपी सिंह के कौशल से नीतीश कुमार प्रभावित थे.
जब नीतीश केंद्रीय रेल मंत्री (Union Railway Minister) बने, तो उन्होंने आरसीपी सिंह को अपना विशेष सचिव बनाया. उसके बाद में नीतीश कुमार जिस किसी विभाग में गए, आरसीपी सिंह को अपने साथ ले गए.
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नवंबर 2005 में नीतीश कुमार के सीएम बनने के बाद आरसीपी सिंह बिहार आ गए. उस समय डिपार्ट्मेन्टल पोस्टिंग में वो अहम भूमिका निभाने लगे. नीतीश कुमार के प्रधान सचिव के रूप में उन्हें मुख्यमंत्री की आवाज के रूप में देखा जाने लगा. फिर जल्द ही, आरसीपी सिंह का प्रभाव नीतीश की पार्टी जद (यू) तक पहुंच गया.
दो बार राज्यसभा सदस्य
2010 में आरसीपी सिंह ने स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले ली. नीतीश कुमार के कारण उन्हें उस वर्ष जद (यू) द्वारा राज्यसभा के लिए नामित किया गया. उन्हें 2016 में फिर से राज्यसभा (Rajya Sabha) के लिए नामांकित किया गया.
उस दौरान आरसीपी सिंह को प्रशांत किशोर से चुनौती मिली जब प्रशांत को चुनाव के दौरान जद (यू) की रणनीति बनाने को मिला. लेकिन प्रशांत किशोर से उन्हें जल्द ही छुटकारा मिल गया. राजनीतिक रणनीतिकार प्रशांत किशोर को जद (यू) का उपाध्यक्ष नियुक्त किया गया लेकिन नीतीश की कृपा से आरसीपी सिंह की जीत हुई और किशोर पार्टी बाहर हो गए.
मुंगेर विवाद
2020 के बिहार विधानसभा चुनावों के दौरान आरसीपी सिंह पहले चरण के मतदान से दो दिन पहले एक विवाद में घिर गए गए थे. दरअसल मुंगेर में एक दुर्गा मूर्ति के विसर्जन के दौरान एक हिंसक झड़प के बाद कथित तौर पर पुलिस फायरिंग में एक व्यक्ति की मौत हो गई थी. उस समय मुंगेर की एसपी उनकी बेटी लिपि सिंह थी. आरसीपी के वहां जाने को लेकर विपक्ष ने काफी हो-हल्ला किया, जिसके बाद चुनाव आयोग ने लिपि सिंह को मुंगेर से हटा दिया.
2019 का मोदी कैबिनेट
माना जाता है कि सिंह और नीतीश के बीच मतभेद 2019 में नरेंद्र मोदी सरकार के कैबिनेट गठन के दौरान हुआ था. नीतीश, जिन्होंने पहली मोदी सरकार में शामिल होने से इनकार कर दिया था, ने 2019 में अपना मन बदलने पर विचार किया. वे आरसीपी सिंह के साथ-साथ राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह को मोदी सरकार में मंत्री पद चाह रहे थे. लेकिन ऐसा नहीं हुआ और नीतीश कुमार की पार्टी ने मोदी सरकार से बाहर रहने का फैसला लिया.
हालांकि 2021 के कैबिनेट विस्तार के समय आरसीपी सिंह को आश्चर्यजनक रूप से केंद्रीय इस्पात मंत्री के रूप में जगह मिल गई. बताया जाता है कि उन्होंने कथित तौर पर नीतीश की सहमति के बिना ही अपना नाम आगे बढ़ा दिया था. उनके इस कदम ने, पार्टी में जहां नीतीश का अधिकार सर्वोच्च है, नीतीश के साथ मनमुटाव को काफी बढ़ा दिया.