समाधान यात्रा पर निकले नीतीश को प्रशांत किशोर की सीधी चुनौती
पटना (TBN – अनुभव सिन्हा)| गुरुवार 5 जनवरी से बिहार में दो यात्राएं निकलेंगी. एक यात्रा पिछले साल 2 अक्टूबर से जारी है. पर तीन में से दो यात्राओं का उद्देश्य ही बिहार पर फोकस करता है. तीसरी यात्रा राष्ट्रीय स्तर की है.
नीतीश कुमार की समाधान यात्रा (Nitish Kumar’s Samadhan Yatra) पश्चिमी चम्पारण से और कांग्रेस पार्टी की भारत जोड़ो यात्रा (Bharat Jodo Yatra of Congress Party) का बिहार संस्करण बांका से गुरुवार को शुरु होगा. कांग्रेस की यात्रा का फोकस अपने स्वनामधन्य नेता राहुल गांधी (Rahul Gandhi) के लिए समर्पित है. इसलिए वह बिहार की दुर्दशा पर केन्द्रित नहीं है.
पिछले 2005 के नवम्बर से अभी तक मुख्यमंत्री के तौर पर नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) ने 13 यात्राएं की हैं, यह उनकी 14वीं यात्रा है और इसे समाधान यात्रा (Samadhan Yatra) का नाम दिया गया है.
शराबबंदी कानून के नाम पर पता करेंगे विकासपरक योजनाओं की वास्तविक स्थिति
मूलरुप से शराबबंदी कानून (prohibition law) को जारी रखने के नाम पर सीएम की यह यात्रा इस बात की भी पड़ताल करेगी कि सूबे में चल रही विकासपरक योजनाओं की वास्तविक स्थिति क्या है. इस झोल को समझना आसान नहीं है पर परिणाम के तौर पर बिहार की दुर्दशा के दर्शन जरूर हो सकते हैं. जाहिर है सीएम दुर्दशा की बात तो नहीं करेंगे लेकिन उनकी समाधान यात्रा का पश्चिमी चम्पारण से शुरु होना इस बार खास है.
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खास इस वजह से कि सीएम की इस समाधान यात्रा से प्रशांत किशोर (Prashant Kishore) की जन सुराज यात्रा (Jan Suraaj Yatra) की सफलता और असफलता जुड़ी है. अभी कुछ दिन पहले ही पश्चिमी चम्पारण की 550 किलोमीटर की पदयात्रा करते हुए प्रशांत किशोर बगल के शिवहर जिले की 140 किलोमीटर यात्रा करने के बाद अभी पूर्वी चम्पारण की पदयात्रा पर हैं.
इधर हाल के दिनों में प्रशांत किशोर ने सिर्फ नीतीश कुमार के ही कार्यकाल की नहीं बल्कि उसके पहले के 15 साल वाले लालू राज (Lalu Government) पर भी सवाल खड़े किए हैं.
यह देखना दिलचस्प होगा कि पूर्वी चम्पारण (West Champaran) के चकिया में मीडिया से बात करते हुए प्रशांत किशोर ने बिहार के जिस भारी भरकम नुकसान का जिक्र किया, प्रतिक्रिया स्वरुप सीएम के कैसे विचार सामने आते हैं. यद्यपि इसकी सम्भावना नगण्य है क्योंकि उनका शेड्यूल पहले से तैयार है जिसमें किसी जनसभा को संबोधित करना शामिल नहीं है.
फिर भी सीएम की खामोशी से प्रशांत किशोर के सवाल की अहमियत कम नहीं होती, बल्कि बढ़ जाती है. राजनीतिक आंकड़ों के माहिर प्रशांत किशोर ने होमवर्क करने के बाद मीडिया को यह बयान दिया कि 1990 से लेकर अभी तक यानी लालू-नीतीश के कार्यकाल में 25 लाख करोड़ रुपये बिहार से बाहर चले गये. पैसा बाहर भेजने का काम बैंकों ने किया जो प्रदेश की खराब जमा-भुगतान अनुपात का आईना है. इस दौरान लालू राज के बाद नीतीश कुमार भाजपा (BJP) और राजद (RJD) दोनों के साथ सत्ता सुख भोगते हुए विकास के नीतीश माडल (Nitish model of development) का राग अलापते रहे.
यह कहा जा सकता है कि विकास में बैंकों की भूमिका को लेकर लालू-नीतीश कभी भी सचेत नहीं रहे. वह बिहार के विकास के लिहाज से एक ठोस शुरुआत हो सकती थी, पर शासकों की दृष्टि विकास के बजाय सत्ता में बने रहने के लिए समाज को बांटकर रखने जैसे घोर प्रतिक्रियावादी नीतियों को धार देने में ही लगी रही.
यही वजह है कि अपनी अविवेकशील, प्रतिगामी और प्रतिक्रियावादी नीतियों को सही ठहराने के लिए बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देकर करोड़ों गरीबों का भावात्मक दोहन करने की राजनीति को ही सरल और व्यावहारिक मानते हैं.
पूरा दिन पश्चिमी चम्पारण में गुजरने के बाद सीएम का रात्रि विश्राम सीतामढ़ी में है. पर उनकी पश्चिमी चम्पारण की यात्रा को प्रशांत किशोर के जगाए गए अलख की नजर से भी देखना होगा. वह शिवहर भी जाएंगे जहां प्रशांत किशोर अपनी यात्रा पूरी कर चुके हैं.