सांता क्लॉज़ की भूमिका निभाते हुए नीतीश ने चढ़ाया बिहार का सियासी पारा
पटना (TBN – The Bihar Now की स्पेशल रिपोर्ट)| संयुक्त राज्य अमेरिका में इस बात पर हमेशा एक विवादास्पद बहस होती रही है कि सांता क्लॉज़ रिपब्लिकन हैं या डेमोक्रेट. और प्रतिक्रियाएँ हमेशा पक्षपातपूर्ण रही हैं. लेकिन अगर आप बिहार में हैं, तो सांता क्लॉज़ समाजवादी धर्मनिरपेक्ष मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (chief minister Nitish Kumar) जैसा दिख सकता है, बेशक, लहराती दाढ़ी के बिना.
यदि 70 दिनों के भीतर सरकारी शिक्षकों के लिए 220,000 से अधिक नौकरियाँ पर्याप्त नहीं थीं, तो 16 जनवरी को नीतीश कैबिनेट ने हर महीने 6,000 रुपये या उससे कम कमाने वाले लगभग 9.4 मिलियन परिवारों में से प्रत्येक को 2 लाख रुपये का अनुदान देने का वादा किया हैं. पिछले साल राज्य में जाति आधारित गणना (Caste-Based Survey) में इन परिवारों की पहचान गरीब के रूप में की गई थी. बता दें, सर्वेक्षण के नतीजे अक्टूबर में सार्वजनिक किये गये थे.
ये परिवार सभी सामाजिक वर्गों को कवर करते हैं. इनमें अनारक्षित श्रेणियों के 1.08 मिलियन, पिछड़ी जातियों के 2.47 मिलियन, अत्यंत पिछड़े वर्गों के 3.31 मिलियन, अनुसूचित जाति के 2.34 मिलियन और 201,000 अनुसूचित जनजाति के परिवार शामिल हैं. वे बिहार की आबादी का 34 प्रतिशत से अधिक हिस्सा बनाते हैं.
कैबिनेट के फैसले में कहा गया है कि इन गरीब परिवारों के कम से कम एक सदस्य को छोटी औद्योगिक या प्रसंस्करण इकाइयां स्थापित करने के लिए तीन किस्तों में 2 लाख रुपये तक का अनुदान दिया जाएगा. अपनी रुचियों और कौशल के आधार पर वे खाद्य प्रसंस्करण, फर्नीचर निर्माण, निर्माण, विद्युत मरम्मत, उपभोक्ता सामान और सेवाओं जैसे 62 व्यवसायों में से चुन सकते हैं. सरकार की बिहार लघु उद्यमी योजना के तहत यह मदद दी जा रही है.
पिछले नवंबर में नीतीश सरकार ने 94 लाख चिन्हित गरीब परिवारों की मदद के लिए अगले पांच वर्षों में 2.5 लाख करोड़ रुपये के आवंटन को मंजूरी दी थी. एक सरकारी बयान में कहा गया है कि इस पहल के अलावा, 63,850 भूमिहीन परिवारों को घर बनाने के लिए जमीन खरीदने के लिए 1 लाख रुपये भी दिए जाएंगे.
इस मेगा वित्तीय सहायता के अलावा, नीतीश सरकार ने रोजगार सृजन और बिहार जाति सर्वेक्षण को लोकसभा चुनाव के लिए अपने प्रमुख राजनीतिक पिच के रूप में भी रखा है.
नीतीश पहले ही कह चुके हैं कि युवाओं के लिए 360,000 नौकरियां पैदा की गई हैं. उनकी सरकार उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव की अध्यक्षता वाले राज्य स्वास्थ्य विभाग में अन्य 140,000 लोगों की भर्ती करने की योजना बना रही है.
बिहार ने पिछले ढाई महीनों में स्कूली शिक्षकों की बड़ी भर्ती पूरी कर ली है. 2 नवंबर को पहले चरण में 120,000 से अधिक शिक्षकों को नौकरी मिली; 13 जनवरी को पटना में अन्य 96,823 शिक्षकों को रोजगार पत्र दिए गए, जिससे 70 दिनों में कुल 216,823 पद हो गए.
नीतीश ने कहा है कि 51 प्रतिशत शिक्षण नियुक्तियाँ महिलाओं की थीं, जो उनके सशक्तिकरण पर सरकार के फोकस को उजागर करता है. इसके अलावा, कैबिनेट ने 26 दिसंबर को लगभग 400,000 संविदा शिक्षकों के लिए राज्य सरकार के कर्मचारी के दर्जे को मंजूरी दे दी थी.
पहले ही बढ़ा दिया आरक्षण
नवंबर में बिहार में आरक्षण पहले ही बढ़ाकर 75 प्रतिशत कर दिया गया है, वित्तीय सहायता और रोजगार सृजन की ये पहल लोकसभा चुनावों से पहले नीतीश को पिछड़ा-सशक्तिकरण राजनीति के केंद्र में लाने का वादा करती है.
जनता दल (यूनाइटेड) के एक वरिष्ठ राजनेता और विधान परिषद के सदस्य ने कहा, “जिन समुदायों को सबसे अधिक फायदा हो रहा है, उनसे उम्मीद की जाती है कि वे नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली महागठबंधन की सरकार को अगले चुनाव में वापसी के लिए प्राथमिकता देंगे.”
कुछ जद (यू) नेताओं का तर्क है कि नीतीश सरकार का आरक्षण सीमा को बढ़ाना और गरीबों को वित्तीय सहायता भाजपा की धार्मिक-राष्ट्रवादी लामबंदी के खिलाफ पार्टी के काम आएगी. नीतीश को लोकसभा चुनाव 2024 में भाजपा का मुकाबला करने के लिए हमेशा एक मजबूत मुद्दे की आवश्यकता थी. अब यह देखना दिलचस्प होगा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की छवि, उनकी ओबीसी पृष्ठभूमि, केंद्र सरकार की कल्याण नीतियों और हिंदुत्व एजेंडे के इर्द-गिर्द अपना चुनावी अभियान बनाने वाली भारतीय जनता पार्टी टक्कर देने के लिए नीतीश का यह कदम उनके लिए कितना फायदेमंद रहता है.
बताते चलें, उत्तर प्रदेश (80 सीटें), महाराष्ट्र (48 सीटें) और पश्चिम बंगाल (42 सीटें) के बाद बिहार में 40 लोकसभा सीटें हैं. जदयू के एक नेता ने कहा, “हम जानते हैं कि हमारा जातीय गणित अकेले मोदी का मुकाबला नहीं कर सकता. लेकिन अब आरक्षण में बढ़ोतरी और गरीबों को वित्तीय अनुदान से हमें मजबूत मुकाबला मिलने की उम्मीद है.”