ललन के बयान को पलटा, चुनाव लड़ने के सारे कयासों पर नीतीश ने लगाया विराम
पटना (वरिष्ठ पत्रकार अनुभव सिन्हा की खास रिपोर्ट)| कभी पलटू राम के नाम से नवाजे गए नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) ने अपने राष्ट्रीय अध्यक्ष के बयान को पलट दिया है. मंगलवार को मीडिया से मुखातिब हुए नीतीश कुमार ने यूपी के एक-दो नहीं बल्कि चार लोकसभा क्षेत्रों में से किसी एक क्षेत्र से चुनाव लड़ने से साफ तौर पर इंकार कर दिया है.
उनके इंकार करने के बाद पिछले दो दिनों से चल रही चर्चा पर मंगलवार को विराम लग गया. जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह (Lalan Singh JDU National President) ने दो दिन पहले मीडिया को बताया था कि मुख्यमंत्री यूपी के फूलपुर (UP’s Phulpur) से लोकसभा का चुनाव लड़ सकते हैं.
पिछले 17 वर्षों से बिना चुनाव लड़े मुख्यमंत्री बने रहे नीतीश कुमार के फूलपुर सहित चार लोकसभा क्षेत्रों में से किसी एक से चुनाव लड़ने की चर्चा को नरेन्द्र मोदी (PM Narendra Modi) के खिलाफ एक मजबूत चुनावी रणनीति का हिस्सा बताया जा रहा था. विपक्ष को तैयारी का मैसेज दिया गया था. पर, उस मैसेज के आधे हिस्से पर ही नीतीश कुमार फोकस करेंगे, मीडिया को उन्होंने यही बताया.
यानी, विपक्ष को एकजुट करने की उनकी कोशिश जारी रहेगी. बिहार छोड़ किसी दूसरे प्रांत से चुनाव लड़ने की बात को उन्होंने सिरे से खारिज कर दिया.
हालांकि उन्होंने एक और बात कहकर एक नए कयास को जन्म भी दिया. जब, उन्होंने यह कहा कि आने वाला समय नयी पीढ़ी के लिए है, और जो कुछ भी करना है, बगल में खड़े तेजस्वी यादव की ओर इशारा करते हुए उन्होंने कहा कि इन्ही लोगों के लिए करना है.
इस बात से यह कयास लगाए जाने लगे हैं कि सीएम की कुर्सी का इंतजार तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) के लिए अब लम्बी प्रतीक्षा का नहीं रहने वाला है. हालांकि यह कैसे होगा और कब होगा, अभी साफ नहीं है.
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राजनीतिक प्रेक्षकों के अनुसार फिलहाल नीतीश कुमार की इस बात का ताल्लुक़ राजद से हाथ मिलाने के निर्णय से भी हो सकता है. जदयू के राजद में विलय की बात जैसे उठी, वैसे ही समाप्त भी हो गई क्योंकि उससे पार्टी में टूट की आशंका थी. इसकी अगली कड़ी की सम्भावना से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि जदयू का अस्तित्व तबतक ही है जबतक नीतीश कुमार मुख्यमंत्री हैं.
बहरहाल, लोकसभा चुनावों में जो डेढ़ साल का समय बचा हुआ है, वह नीतीश कुमार के लिए जितना भी महत्वपूर्ण हो, बिहार में चुनौती देने की उनकी स्थिति को मजबूती नहीं मिल रही है. इसकी सबसे बड़ी वजह यह बताई जा रही है कि वह मुख्यमंत्री के नाम पर राजद का मुखौटा बन कर रह गए हैं.