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तीन में न तेरह में नीतीश कुमार

पटना (TBN – वरिष्ठ पत्रकार अनुभव सिन्हा की खास रिपोर्ट)| भाजपा (BJP) पर पार्टी तोड़ने की साजिश का आरोप लगाकर नीतीश कुमार (Nitish Kumar) ने पिछले साल अगस्त में दूसरी बार भाजपा से रिश्ता तोड़ तो लिया, लेकिन जैसे-जैसे समय बीत रहा है वैसे-वैसे अपनी राजनीति के मकड़जाल में वह फंसते जा रहे हैं. जब लालू यादव (Lalu Yadav) जैसा पालिटीशियन सहयोगी बनकर साथ हो तब नीतीश कुमार के पेट का दांत काम नहीं कर पा रहा है.

लालू को राजनीति का धुरंधर बताने वालों की कमी नहीं है. यह एक ऐसी बात है जिसने बिहार में एक प्रकार से स्थाई नैरेटिव का रूप ले लिया है. लालू मतलब जीत की गारंटी. लेकिन पता नहीं क्यों ऐसे लोगों को लोकसभा चुनाव परिणाम याद नहीं आते ! सजायाफ्ता लालू यादव को अदालत ने आदतन अपराधी करार दिया है. लालू यादव महज एक मिसाल है उस षढयंत्रकारी राजनीति का जिसका बीजारोपण कांग्रेस (Congress) ने देश के स्तर पर किया और लालू ने बिहार में उसे जमीन पर उतार दिया. लेकिन कांग्रेस का मूल लालू में नहीं है, इसलिए पकड़ में आए और सजा भी मिली.

नीतीश के लिए दरवाजे बंद !!

खैर, ओखल में सर देने वाले नीतीश कुमार अब जाकर फेर में पडे़ हैं. राजनीतिक हित साधने में लालू से मुकाबला उनके वश का नहीं है. इसलिए विपक्ष का नेतृत्व करने की उनकी चाहत में जो पलीता लगा है, उसके एक नहीं कई कारण हैं जिसमें पहला है सुप्रीम कोर्ट से राहुल गांधी (Rahul Gandhi) को मिली राहत. इस राहत ने नीतीश कुमार के दरवाजे बंद कर दिए हैं.

निर्णायक भूमिका में नहीं

इस बात पर हैरत न हो तो अच्छा कि जब विपक्ष को नरेन्द्र मोदी (PM Narendra Modi) के खिलाफ लामबंद करने में नीतीश कुमार को शुरूआती कामयाबी मिले और बिहार में ही उनकी लुटिया डूब जाए. इसकी आशंका पूरी है, क्योंकि राजद सुप्रीमो ने नीतीश कुमार के उस प्रस्ताव को ठुकरा दिया है जिसमें लोकसभा की 40 सीटों के बंटवारे की पेशकश थी. बिहार सीएम की दिक्कत यह है कि बडे़ सहयोगी दल से वह सिर्फ अनुरोध कर सकते हैं, निर्णायक भूमिका उनकी नहीं है.

सीटों को लेकर चुनौतियां

नीतीश कुमार की इस स्थिति से उनके सभी 16 सांसद वाकिफ हैं और 22-24 सीट पर राजद के चुनाव लड़ने की चर्चा मात्र से उनके पसीने छूट रहे हैं. चर्चा यह है कि नीतीश कुमार को ज्यादा-से-ज्यादा 8 सीटें मिल सकती हैं. कांग्रेस 12 सीटों से कम पर चुनाव लड़ने के लिए तैयार नहीं है और इससे लालू यादव भी परेशान हैं. कांग्रेस का आत्मविश्वास कई कारणों से बढा़ हुआ है. इंडिया (I.N.D.I.A.) के बिहार चैप्टर में तीन मुख्य दलों की खींचतान महाराष्ट्र में होने वाली विपक्षी बैठक में दिखाई देगी. उस बैठक में कई राज्यों की चुनौतियां भी सामने आयेंगी. पर, आशंका यह है कि सबसे ज्यादा घाटे में नीतीश कुमार रहेंगे.

नीतीश कुमार का हालिया दो दिनी दिल्ली प्रवास अज्ञात रहते हुए भी चर्चा में है. रिकार्ड पर यही है कि उन्होंने किसी से मुलाकात नहीं की. पर इसका विश्लेषण यह हुआ है कि मुलाकात की गुंजाइश ही नहीं थी. यह इंडिया (I.N.D.I.A.) के बदले माहौल का संकेत भी हो सकता है. दिल्ली और महाराष्ट्र की जटिलताओं पर नजर डालने पर जो स्थिति बनती नजर आती है, उसका असर सीधे नीतीश कुमार पर पड़ सकता है.