PatnaPoliticsफीचरसंपादकीय

न मुहिम रुकेगी न ग्राफ उपर चढे़गा, फिर क्या होगा नीतीश कुमार का….!!

पटना (TBN – वरिष्ठ पत्रकार अनुभव सिन्हा की रिपोर्ट)| राजनीतिक कारणों से ही सही, बिहार के सीएम नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) सुर्खियों में हैं. उनकी कोशिश है कि यह स्थिति बनी रहे. जबकि बिहार से लेकर देश भर में इस राजनीतिक तापमान का लिया जा रहा जायजा यह संकेत दे रहा है कि लोकसभा चुनावों में बराबरी का ही टक्कर होने की स्थिति नहीं बन रही है.

कहा जा रहा है कि नीतीश कुमार को दिल्ली (Delhi) का दौरा पड़ गया है. वह सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) के लौटने का इंतजार कर रहे हैं. और, इस बार लालू (Lalu Prasad Yadav) भी साथ जायेंगे.

हाल के दिनों में राजनीतिक गतिविधियों को लेकर महाराष्ट्र, मणिपुर, दिल्ली, पश्चिम बंगाल, तेलंगाना, गुजरात, हिमाचल प्रदेश जैसे राज्य काफी चर्चा में रहे, जबकि गुजरात और हिमाचल प्रदेश मे इस साल के अंत तक चुनाव भी होने वाले हैं. उम्मीद थी कि राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा (Bharat Jodo Yatra of Rahul Gandhi) सियासी माहौल बदलेगी, लेकिन आशंकाएं ज्यादा हैं और शायद ही बदलाव आ पाए.

राजनीतिक दलों की सक्रियता रोजमर्रे का हिस्सा हैं तो सोशल मीडिया और मीडिया घराने भी खबरों की की होड़ में हैं. खासकर बिहार में सत्ता पलट की घटना के बाद अद्यतन स्थिति का मीडिया और सोशल मीडिया सर्वे जो संकेत दे रहे हैं, वह विपक्षी धमाचौकड़ी से ज्यादा कुछ नजर नहीं आता. जबकि उद्देश्य भाजपा को सत्ता से बेदखल करने का है. सर्वे प्रोजेक्शन वर्ष 2024 का नहीं है. वह अद्यतन है. सर्वे इस आधार पर किए गए हैं कि यदि आज चुनाव हों तो परिणाम क्या होंगे.

बात बिहार की करें तो वर्ष 2019 के परिणाम जैसा वर्ष 2024 का परिणाम नहीं होगा. चूंकि तब भाजपा नीतीश कुमार के साथ मिलकर चुनाव नहीं लड़ेगी, उस लिहाज से वह अपने 17 सीटों के मुकाबले फायदे मे रहेगी, पर जिस बात को बड़ी मजबूती से उछाला जा रहा है उस स्थिति में महागठबंधन कहीं नजर नहीं आता.

महागठबंधन में सात दल हैं. सबो को टिकट चाहिए. सीट जीत लेने की जिम्मेदारी सामूहिक होगी. इसका फायदा राजद, जदयू और कांग्रेस को मिलता हुआ नजर नहीं आता. ये तीनों दल मिलाकर 12-15 सीट ही हासिल कर पायेंगे. यानी बाकी सीटें भाजपा की झोली में जाती हुई बताई गईं हैं.

यह भी पढ़ें| बिहार में ‘महागठबंधन और भाजपा’ में है ‘सेव और संतरे’ का झगड़ा

सर्वे में इसकी वजह भी पूछी गई. लोगों के जवाब महागठबंधन की विश्वसनीयता की पोल खोलते हैं. उसी तरह राष्ट्रीय चैनल एबीपी न्यूज के सर्वे ने भी विपक्ष को दौड़ में नरेन्द्र मोदी से काफी पीछे बताया है.

बिहार में महागठबंधन समय की दुहाई देकर अपनी स्थिति मजबूत होने का मैसेज अपने वोटबैंक को दे सकता है. लेकिन साथ ही भाजपा भी अपना 35 + का टारगेट पूरा करने की कोशिश में लगी रहेगी.

सोशल मीडिया और न्यूज चैनल के सर्वे बिहार का मूड बता रहे हैं. चुनाव में जितना समय बाकी है, उसे देखते हुए सर्वे का मतलब यह निकलता है कि कुछ विशेष स्थिति होने पर ही मौजूदा मूड में बदलाव आ सकता है. अन्यथा, लोकसभा चुनावों में महागठबंधन में शामिल दलों की सामूहिक ताकत भी उनकी मदद नहीं करने वाली. देश के प्रति महागठबंधन का नजरिया लोगों को पसंद नहीं आया है.

(उपरोक्त लेखक के निजी विचार हैं)