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राजद-जदयू-कांग्रेस के खेल में लुट गए सूबे के मुसलमान

पटना (TBN – वरिष्ठ पत्रकार अनुभव सिन्हा की खास रिपोर्ट)| जातीय जनगणना की रिपोर्ट (Caste Census Report) को अपना मास्टर स्ट्रोक बताने वाले नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) हों या राजद (RJD) या कांग्रेस (Congress), रिपोर्ट सार्वजनिक हो जाने के बाद बेहद सतर्क हो गए हैं. आलम यह है कि आबादी के लिहाज से हक की हकमारी का इंतजाम हो रहा है. सवाल है कि जब 17.7% मुसलमानों की आबादी (Muslim population) है और यादवों (Yadav population) की 14.2% तब मुख्यमंत्री किसी मुसलमान को क्यों नहीं बनाया जा रहा है ?

संख्या के लिहाज से नीतीश कुमार की बिरादरी महज 2.8% है और इसी वजह से वह पीछे रह जाने की स्थिति में आ गए हैं तो लालू और कांग्रेस ने नीतीश को आगे होने वाली दिक्कतों का अहसास कराया है. लालू (RJD Supremo Lalu Prasad Yadav) की शह पर कांग्रेस के एक पूर्व प्रदेश अध्यक्ष ने दलित, मुस्लिम और अति पिछड़े को डिप्टी सीएम कुर्सी दिए जाने की मांग कर दी है.

लालू यादव नहीं चाहते कि मुसलमान वर्ग सीएम पद की दावेदारी खडी़ करे. इसलिए आबादी ज्यादा होने के बावजूद मुसलमानों को डिप्टी सीएम का झुनझुना पकडा़ना चाहते हैं. वह नहीं चाहते कि सीएम पद की दावेदारी में आबादी का मसला मुसलमानों की तरफ से उठे और तेजस्वी यादव की दावेदारी पर ग्रहण लग जाए.

लालू भी सकते में

यह तो अभी शुरुआत है. अंदाजा लगाया जा सकता है कि लालू यादव की मंशा क्या-क्या है. हलांकि कुछ लोग यह भी मानते हैं नीतीश कुमार अकेले ऐसे नेता हैं जिनके पास पिछड़ी और अतिपिछड़ी जातियों का वोट बैंक है. जाहिर सी बात है कि यदि ऐसा होता तो लालू यादव के समक्ष वह नतमस्तक नहीं हुए होते. लेकिन जातीय जनगणना के आईने में नीतीश कुमार स्टेयरिंग चेयर पर भले बैठे हों, रिमोट कंट्रोल तो लालू यादव के पास है. फिर भी, लालू भी सकते में हैं. मुसलमानों की तरफ से अगर यह आवाज उठ गई तो लालू को मुश्किल होगी.

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फिर से उठ सकती है एआईएमआईएम की मांग

जनगणना रिपोर्ट में ओबीसी की संख्या 27 फीसदी बताई गई है. उसमें अकेले यादव 14.2% हैं. मुसलमानों की सारी जातियां मिलाकर 17.7% आबादी है. इसलिए सीएम पद पर मुसलमानों की दावेदारी को लालू ने खारिज ही मान लिया है. कुछ समय पहले एआईएमआईएम के इकलौते विधायक अख्तरुल इमाम ने मुसलमानों के एकमुश्त वोट डालने के आधार पर डिप्टी सीएम पद की मांग की थी. लेकिन तब जातीय जनगणना की रिपोर्ट नहीं आई थी. अब तो रिपोर्ट सार्वजनिक हो चुकी है. ऐसे में असदउद्दीन ओवैसी या फिर बिहार के मुसलमान लालू की बात मान लेंगे, यह समझ से परे है.

एमवाई और लवकुश समीकरण खो चुके हैं अहमियत

इसी से जुडा़ दूसरा मौजूं सवाल है कि 1990 से अभी तक सत्ता तो लालू-नीतीश के हाथ में ही रही. दलितों, पिछडो़ं और अल्पसंख्यकों के विकास के लिए दोनो सरकारों ने क्या किया ? पिछले 33 सालों में राजद के एमवाई (MY Equation) और नीतीश कुमार के लवकुश समीकरण (Luv Kush Equation), रिपोर्ट आने के बाद अपनी अहमियत खो चुके हैं. लालू का समीकरण दरक सकता है तो नीतीश कुमार का लवकुश समीकरण बिखर गया है. नीतीश कुमार की बिरादरी के 2.8% के अलावा ओबीसी के बचे 13%, पिछडो़ं की 36% और अनुसूचित जाति की 20% आबादी को सत्ता से वंचित रख पाना अब लालू-नीतीश के हाथ में नहीं रह गया है.

कांग्रेस पार्टी भी अपने हाथ का मैल ही छुडा़ रही है. मुसलमानों की आबादी के लिहाज से वह लालू यादव के एमवाई समीकरण में सेंधमारी कर सकती तो माहौल बदल सकता था. पर, सांगठनिक कमजोरी और आपसी फूट की वजह से इस मौके को भुना पाने में असमर्थ है. और यह तब है जब अल्पसंख्यकों का झुकाव कांग्रेस की तरफ बढ़ता जा रहा है. लेकिन बिहार कांग्रेस के पास ऐसा कोई दमदार अल्पसंख्यक चेहरा नहीं है.