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मुगालते में है महागबंधन, भाजपा अपनी रणनीति को दे रहा स्वरुप

पटना (TBN – अनुभव सिन्हा)| बिहार में सत्ता परिवर्तन के बाद से अकेली बच गई भाजपा (BJP) और शेष दलों का महागठबंधन, दोनों असहज हैं. महागठबंधन (Mahagathbandhan) के नेता नीतीश कुमार (Nitish Kumar) ने देश के बिखरे विपक्ष को एक करने का बीड़ा उठाया है, इसलिए उनके सामने राष्ट्रीय चुनौती है. दूसरी तरफ भाजपा का स्पष्ट उद्देश्य है और वह है 2025 में बिहार में महागठबंधन की सरकार को सत्ता से बेदखल कर देना.

अपने-अपने दूरगामी लक्ष्य को प्राप्त करने की दोनों की कोशिश में जो कुछ भी रोज सामने आता है, उसके संकेत स्पष्ट होते हैं. वह कभी हड़बड़ी में उठाया गया कदम तो कभी लोकसभा चुनाव होने में लगने वाले समय की वजह से इतमीनान रहने जैसा संकेत भी देता है.

नीतीश-लालू की सोनिया गांधी से हुई मुलाकात

जैसे, दिल्ली में नीतीश-लालू की सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) से हुई मुलाकात हड़बड़ी में उठाया गया कदम ही साबित हुआ. दो धुरंधर उस तीसरी शख्सियत से मिलने पहुंचे थे जिसे दोनों के मक़सद की पूरी जानकारी है. इस मुलाकात के पहले नीतीश और लालू दोनों ने कहा था कि सोनिया गांधी से उनकी मुलाकात राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा (Bharat Jodo Yatra of Rahul Gandhi) के समाप्त होने पर होगी. लेकिन दोनों ने जनवरी तक इंतजार करने के बजाय मुलाकात का दौर शुरु करना बेहतर समझा होगा, पर उस मुलाकात से जो भी सामने आया, दोनों धुरंधरों के लिए मुश्किलों की एक झांकी छोड़ गया.

नीतीश कुमार खाली हाथ लौटे

अब इस पर राजनीति हो रही है. कांग्रेस ने मुलाकात के पहले दिए गए बयान से पलटने को सीधे तौर पर राहुल गांधी को नजरअंदाज करना माना है. तो दूसरी तरफ हरियाणा (Haryana) में ओम प्रकाश चौटाला (Om Prakash Chautala) का प्रयास मिलन समारोह में बदल नहीं पाया और वहां से भी नीतीश कुमार खाली हाथ ही लौटे. नतीजतन, नीतीश कुमार का दूसरा दिल्ली दौरा टोटल फ्लाप शो साबित हुआ.

इधर सूबे में सरकार के ताकतवर होने का एहसास नहीं हो पा रहा है. इसका फलसफा महज इतना है कि नीतीश कुमार ने अपनी महत्वाकांक्षा को पूरा करने के लिए जदयू का इकबाल ही दांव पर लगा दिया. नीतीश कुमार को अपना फैसला सही साबित करने में मशक्कत करनी पड़ रही है और अकेली पड़ी भाजपा को कमजोर बताने में पसीने छूट रहे हैं.

महागठबंधन का ख्याल था कि नीतीश कुमार ने भाजपा को जिस तरह से झटका दिया, उससे उबर पाना मुश्किल होगा और महागठबंधन सरकार की हनक कायम होगी. लेकिन अपार बहुमत के बावजूद सरकार को अपना इकबाल कायम करने में कठिनाई हो रही है.

अपना घर दुरुस्त कर रही भाजपा

दूसरी तरफ भाजपा ने भी बिहार में नई स्थिति को देखते हुए पहले अपना घर दुरुस्त करना बेहतर समझा है. नीतीश कुमार को घातक परिणाम देने वाले चिराग पासवान और उनके चाचा पशुपतिनाथ पारस के बीच चल रहे घमासान को खत्म करने की कोशिश कर रही भाजपा को कामयाबी मिलने के संकेत हैं.

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भाजपा के सामने चाचा-भतीजा की प्रतिष्ठा और 6-7 प्रतिशत दलित वोट को पहले की तरह अपने पाले में बनाए रखने की समस्या का हल निकालना जरूरी था. खबर ये है कि लोजपा से अलग होकर पशुपतिनाथ पारस के नेतृत्व में अलग हुए गुट का जल्द ही भाजपा में विलय हो जायेगा.

चिराग एनडीए में हो जायेंगे शामिल !

इस कदम से चिराग पासवान (Chirag Paswan) के गुट के पास एकबार फिर पहले जैसी स्थिति हो जायेगी और चाचा पशुपतिनाथ पारस (Pashupati Paras) की तरफ से चिराग को मिलने वाली चुनौती भी समाप्त हो जायेगी. इसका नतीजा यह होगा कि चिराग पासवान एनडीए (NDA) में शामिल हो जायेंगे.

राजनीतिक प्रेक्षक भी इस स्थिति को महागठबंधन के लिए एक बड़ी चुनौती मानते हैं. महागठबंधन में शामिल दलों के अपने द्वन्द्व हैं और चुनाव के समय सीटों के बंटवारे को लेकर होने वाले घमासान जैसी स्थिति से भाजपा और उसके सहयोगी का सामना नहीं होगा. इधर हाल के दिनों में चिराग पासवान जिस तरह से नीतीश कुमार पर हमलावर रहे हैं, वह नीतीश कुमार को असहज करने वाला रहा है.

कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि चिराग पासवान के भाजपा में शामिल हो जाने के बाद भले सहयोगी की संख्या एनडीए में कम रहे, गुणात्मक रुप से सात दलों वाले भारी-भरकम महागठबंधन के अन्तर्विरोधों और द्वन्द्वों से वह मुक्त रहेगी. यह स्थिति महागठबंधन के लिए बड़ी चुनौती साबित हो सकती है.