बिहार विधानसभा चुनाव में होगा PK का लिटमस टेस्ट
पटना | मंगलवार को राजधानी पटना में अपने प्रशांत किशोर ने अपने पत्ते खोले. उन्होंने बिहार के मुख्यमंत्री पर जमकर निशाना साधा. इसी संदर्भ में एक विशेष लेख प्रस्तुत है-
बिहार के लिए यह चुनावी साल है. चालू वित्तीय वर्ष का लेखा – जोखा और अगले वर्ष का बजट आना अभी बाकी है. लेकिन इस गरीब सूबे की आर्थिक स्थिति से अलग चुनावी वर्ष में यहां की राजनीतिक स्थिति के बेहद दिलचस्प होने के संकेत मिलने लगे हैं.
फिलहाल दो खेमों में बटी बिहार की राजनीति इस बार कैसे – कैसे करवट लेगी , इसका अनुमान होने लगा है.
महागठबंधन में शामिल दल अपनी – अपनी ताकत दिखाने पर आमादा हैं. तेजस्वी यादव महागठबंधन के सर्वमान्य नेता होंगे , इसपर छोटे -छोटे दल तक तैयार नही दिख रहे. प्रतिपक्ष के नेता का नज़रिया इन्हें पसन्द नही आ रहा है.
खुद पार्टी के अंदर प्रदेश की जम्बो कमिटी के गठन को लेकर अगड़े – पिछड़े वर्ग के बीच संशय की स्थिति बनी हुई है. पार्टी संविधान को धत्ता बताते हुए जम्बो कमिटी के गठन से यह सवाल पैदा हुआ है कि विकास और गरीबी की राजनीति करने वाली यह पार्टी व्यक्तिगत स्वार्थों से ऊपर उठाने की स्थिति में नही है. जम्बो कमिटी के सन्देश यही है कि पार्टी में सबों को पद चाहिए. जिन्हें नही मिला वह नाराज हैं.
कांग्रेस पार्टी तेजस्वी यादव के नेतृत्व पर सवाल उठाया है. रालोसपा , हम और वीआईपी जैसे सहयोगी दलों को सम्मान न मिलने की चिंता से वह कोई नया कदम भी उठा सकते हैं.
परन्तु इन सबों से अलग एक नया फैक्टर भी है जो बिल्कुल अलग तरीके से ताल ठोकने पर आमादा है. यह नया फैक्टर प्रशांत किशोर हैं.
प्रशांत किशोर की प्रतिष्ठा और साख दोनों दांव पर है. उन्होंने कांग्रेस और राजद के साथ जाने से इनकार किया है. जदयू से निकाले जाने के तरीके से आहत प्रशांत जी फिलहाल मजबूती के साथ आप से जुड़े हैं जिनकी रणनीति ने अरविंद केजरीवाल को दूसरी बार दिल्ली चुनाव में शानदार सफलता दिलाई.
प्रशांत किशोर की साख का विशेष मतलब है. अगले साल पश्चिम बंगाल में भी विधान सभा चुनाव होने हैं और किशोर जी ममता दीदी से भी जुड़े हैं. उसके पहले होने वाला बिहार विधान सभा चुनाव उनके कैरियर के लिए लिटमस टेस्ट जैसा ही होगा.
महागठबंधन की एकजुटता मुख्य रूप से राजद के दृष्टिकोण पर निर्भर है जिसमे कई गांठे हैं तो सबों से मिलकर जिसे चुनौती मिलने वाली है वह एनडीए है जिसकी अपनी रफ्तार है.
राजनीतिक हलकों में गृह मंत्री एवं पूर्व भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के मुकाबले जदयू की तरफ से प्रशांत किशोर को खड़ा करने की चर्चा भी थी लेकिन आलाकमान के निर्णयों के खिलाफ जाने पर न सिर्फ उन्हें पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया बल्कि इसी ने अब उनके कैरियर को भी दिलचस्प मोड़ पर लाकर खड़ा कर दिया है.
प्रशांत किशोर डूबें या डुबाएं , बिहार की राजनीति का एक यह कोण एनडीए के लिए महत्वपूर्ण होने वाला है.
(वरिष्ठ पत्रकार अनुभव सिन्हा की कलम से)