लालू को मिलेगी बेल या रहेंगे जेल में ! सुनवाई आज

पटना / रांची (TBN – वरिष्ठ पत्रकार अनुभव सिन्हा की खास रिपोर्ट)| किसी अपराधी को दी गई सजा दूसरे अपराधियों और समाज के लिए एक सबक के तौर पेश की जाती है. लेकिन व्यवहार में चीजें जिस तरह से सामने आती हैं, वह सबों के लिए कानून के समान होने की अवधारणा को स्थापित नहीं कर पाती. ऐसे में कुछ ऐसे फैसले भी सामने आ जाते हैं जो समानता की अवधारणा को खण्डित करते हुए प्रतीत होते हैं.
जैसे, चारा घोटाले (Fodder Scam) में लालू यादव (Lalu Prasad Yadav) के खिलाफ पांचवें मामले (डोरण्डा कोषागार मामला, जिसमे पांच साल की सजा मिलने के बाद लालू जेल मे हैं) में मिल सकने वाली जमानत की ही बात की जाए तो यह बिल्कुल ‘सलेक्टिव’ सा मामला नजर आता है. मसलन, लालू की उम्र 75 साल की हो गई, डेढ़ दर्जन बीमारी से लालू यादव पीड़ित हैं और अन्य चार मामलों मे मिली सजा मे से आधी सजा लालू काट चुके हैं, इसलिए उनको जमानत मिलनी चाहिए.
क्या यह सवाल खड़ा नहीं होता कि आधी सजा काट लेने पर जब जमानत मिल सकती है तो अदालतें पूरी सजा सुनाती ही क्यों हैं ? लालू के ही मामले को आगे बढ़ाया जाए तो, किसी फैसले पर जबतक सुप्रीम कोर्ट की मुहर नहीं लग जाती, वह जमानत का हकदार है. आर्थिक अपराधी साबित हो जाने के आधार सजा मिलने के बावजूद लालू यादव को जमानत मिलने के दो कारण हैं. एक, यह कानूनी अधिकार है और दूसरे अंतिम मुहर के तौर पर सभी पांच मामलों में से किसी एक मामले में भी सुप्रीम कोर्ट का फैसला अभी तक नही आया है.
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लालू यादव को मिली सजा और लालू की राजनीतिक हैसियत दोनों अलग-अलग तथ्य हैं. राजनीतिक हैसियत के बूते लालू ने अपनी सरकार चलाई, घोटाला किया, सजा भी मिली, लेकिन कोर्ट के दायरे में लालू की राजनीतिक गतिविधियां नहीं आती और इसीलिए लालू और राजद दोनों “जिन्दा” हैं. मौजूदा हालात में जब राजद सत्ता में नहीं है, यह स्वाभाविक है कि उसकी गतिविधियों पर कोई रोक नहीं लग सकती. जब उसे सत्ता मिले और फिर वही आचरण वह दुहराए, तब फिर से कानूनी शिकंजे की बात होगी.
लेकिन अपने राजनीतिक आचरण से लालू ने बिहार को जो जख्म दे दिया है, वह अभी भी रिसता है. राजद का अपना जनाधार है जिसे वह बढ़ाना भी चाहता है, पर बिहारवासी जो उसमें देखना चाहते हैं, वह उन्हें नजर नहीं आता और इसीलिए राजद समर्थकों की जितनी संख्या है, उससे कहीं ज्यादा संख्या उन लोगों की है जो उसकी राजनीतिक शैली पर ही संदेह करते है और उसकी नीतियों को एप्रूव नहीं करते.
ऐसे में रांची हाईकोर्ट में आज (4 मार्च) को लालू की जमानत याचिका पर होने वाली सुनवाई पर लालू परिवार और राजद समर्थकों की नजर है.
(उपरोक्त लेखक के अपने विचार हैं)