लालू ने खुलकर किया भ्रष्टाचार का समर्थन !!
पटना (TBN – वरिष्ठ पत्रकार अनुभव सिन्हा की रिपोर्ट)| लालू यादव (Lalu Prasad Yadav) ने 1997 से अभी तक लाखों बार झूठ-झूठ चिल्लाते हुए भी उसे सच साबित नहीं किया. उल्टे चारा घोटाले में सजा हो गई. सांसदी तो गई ही, अब वोट तक नहीं डाल सकते. लेकिन आज भी अपने आपराधिक चरित्र के आधार पर बिहार (Bihar) के अपराधियों का हौसला बढा़ने में लगे हुए हैं.
कांग्रेस (Congress) जैसी दुर्बल चरित्र वाली पार्टी के सत्ता में रहते हुए और बाद में कांग्रेस दरबार के आगे दुम हिलाने वाले लालू ने बिहार में कांग्रेस को दोयम दर्जे की पार्टी बनाकर संतुलन साध लिया था. अपने एम-वाई समीकरण (MY Equation) को चलता-पुर्जा बनाये रखने के लिए मुसलमानों को भाजपा (BJP) का डर दिखाया और यादवों (Yadav) को जातिवाद का नशेडी़ बनाया और ताल ठोकते रहे. यह समीकरण वैसा मजबूत भी नहीं है जैसा लालू का दावा है, पर इसी के बिना पर सजायाफ्ता होने के बाद भी लालू की राजनीति चलती रही और समाज में अपराधी के बजाय नेता की ही छवि रही जिससे बिहार का चारित्रिक अपराधीकरण होता रहा.
सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) लालू की सजा पर अंतिम मुहर लगाएगा जो अभी तक नहीं लगी है. जमानत पर चल रहे लालू की आधी सजा अभी बाकी है. और यह अब लालू का सबसे बडा़ हित बन गया है. दूसरा हित है तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) को सीएम की कुर्सी पर बैठाने का और इसी दो लाईन पर लालू की राजनीति चल रही है.
नीतीश को नहीं मिल रहा पूरा श्रेय
कई कारणों से भारी दबाव में चल रहे नीतीश कुमार (Nitish Kumar) अभी जातीय जनगणना रिपोर्ट (Caste Census Report) के सहारे अपना डैमेज कंट्रोल करने में लगे हैं. लेकिन लालू के रहते पूरा श्रेय नहीं मिल रहा है. दोनो, रिपोर्ट के आधार पर अल्पसंख्यक मतदाताओं (minority voters) से सचेत हैं और उनको झुनझुना थमाने का आश्वासन दे रहे हैं. इसीलिए असदउद्दीन ओवैसी (Asaduddin Owaisi) की पार्टी को भाजपा की बी टीम बताने से कोई भी मौका नहीं छोड़ते ताकि मुसलमानों को अपनी संख्याबल का अहसास भी न होने पाए. मुसलमान की वजह से लालू अपने वोट बैंक को मजबूत मानते हैं जबकि उनके समीकरण के दरकने के हालात हैं.
ऐसे में लालू यादव ने अपने X (ट्वीटर) हैंडल पर ट्वीट करते हुए जातीय जनगणना का विरोध करने वालों को न्यायिक चरित्र वाले लोग मानने से इंकार किया है. जातीय जनगणना विरोधी, लालू की नजर में इंसानियत, सामाजिक-आर्थिक-राजनीतिक और समानुपातिक प्रतिनिधित्व के विरोधी हैं. यह दृष्टिकोण उस सजायाफ्ता नेता का है जिसने खुद को गरीबों का मसीहा बताया और भ्रष्टाचार के बूते खरबपति बन बैठा. जो लोग लालू राज में 15 साल के दौरान लालू की सभाओं में नंगे पांव जाते थे अब उनकी अगली पीढी़ लालू पुत्र के सभाओं मे नंगे पांव जाती है. पिछले 33 वर्षों में समय बदल गया लेकिन नहीं बदले तो लालू समर्थकों के हालात. और सिफत यह कि अपनी भ्रष्टाचारी नीति को आगे बढा़ने वाले लालू यादव अपने समर्थकों को भेड़ की तरह हांक देते हैं. इसलिए लालू यादव की कोशिश यही रहती है सामाजिक-आर्थिक-राजनीतिक परिदृश्य में कोई बदलाव न आने पाए और बदलाव लाने वाली ताकतों को गरीब विरोधी बताकर अपना हित साधते रहें.
नाखुश होता अल्पसंख्यक समुदाय
पर, खासकर अल्पसंख्यक समुदाय जातीय जनगणना रिपोर्ट सार्वजनिक होने के बाद अपनी राजनीतिक हैसियत से नाखुश होता जा रहा है. उसका झुकाव कांग्रेस की तरफ बढ़ रहा है पर बिहार कांग्रेस (Bihar Congress) की हालत ऐसी नहीं है कि वह लालू के खिलाफ निर्णायक कदम उठा सके. लालू की पहुंच दिल्ली दरबार तक है, यह कांग्रेसियों को पता है. लेकिन जातीय जनगणना रिपोर्ट के आधार पर अब ईबीसी वर्ग (EBC Class) का राजनीतिक आचरण लालू-नीतीश के मंसूबों पर पानी फेर सकता है, इस सम्भावना से भी इंकार नहीं किया जा सकता.
अपराध और भ्रष्टाचार का जो खेल लालू ने खेला, उस प्रभाव से बिहार की मुक्ति फिलहाल नजर नहीं आती. इसकी बड़ी वजह गरीबी है और बिहार के गरीबों को लालू-नीतीश की सरकार ने फिर से बरगलाने की योजना बना रखी है और जातीय जनगणना रिपोर्ट को ट्रम्प कार्ड की तरह इस्तेमाल करने की तैयारी है.
(उपरोक्त लेखक के अपने विचार हैं)