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इस सबके बावजूद तेजस्वी विकल्प नहीं हो सकते – प्रवीण बागी

इसमें दो राय नहीं हो सकती कि नीतीश कुमार ने मुख्यमंत्री के रुप में बेहतरीन काम किया है. अपराध के दलदल में फंसे, निराशा में डूबे, टूटे-हारे बिहार का स्वाभिमान जाग्रत किया. उसे विकास के पथ पर अग्रसर किया. कानून का ऐसा डंडा चलाया की बड़े-बड़े गुंडों की हेकड़ी गुम हो गई. आम बिहारियों की पथराई आंखों में उम्मीद की रोशनी जगाई. वह 2005 से 2010 का कार्यकाल था.

तब से नीतीश खोने लगे अपनी चमक

लेकिन दूसरे टर्म में वे धीरे-धीरे अपनी चमक खोने लगे. शासन पर उनकी पकड़ ढीली पड़ने लगी. अधिकारी राज चलाने लगे. भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस की नीति प्रभावहीन दिखने लगी. शिक्षा चौपट हो गई. नए उद्योग नहीं लगने से रोजगार के अवसर नहीं बढ़े. सरकारी नौकरियों पर भी ताला लगा दिया गया. अपराधी सक्रिय हो गये. कुल मिलाकर बिहार के विकास की गाड़ी रफ्तार पकड़ने से पहले ही ट्रैक से उतर गई.

(आलेख – प्रवीण बागी, वरिष्ठ पत्रकार के फेसबुक वॉल से)

इस बीच नरेंद्र मोदी की खिलाफत, फिर NDA से अलग होकर लालू प्रसाद से गठबंधन करना, जीतन राम मांझी को CM बनाना, फिर उन्हें सत्ता से बेदखल करने और पुनः नरेंद्र मोदी से हाथ मिलाने के घटनाक्रम ने उनकी साख गिरा दी. लॉकडॉउन में कोटा में रह रहे बिहारी छात्रों और अन्य राज्यों से वापस लौटने के इच्छुक बिहारियों को लाने से इंकार कर उन्होंने खुद अपनी भद्द पिटवाई. इन सब वजहों से अब वे पहले की तरह विश्वसनीय चेहरा नहीं रहे.

नीतीश ने चलाया एक क्षत्रप की तरह राज

नीतीश कुमार ने सत्ता का विकेंद्रीकरण नहीं किया. उन्होंने एक क्षत्रप की तरह राज चलाया. सरकार के साथ-साथ पार्टी की बागडोर भी अपने हाथ में रखी. किसी को नंबर दो की भूमिका में नहीं आने दिया. पार्टी कार्यकर्ताओं को सत्ता का हिस्सेदार नहीं बनाया. अफसरों पर आंख मूंद कर भरोसा करने की नीति ने उन्हें पार्टीजनों से दूर कर दिया. BJP और JDU कैडर में अपने नेता के प्रति आक्रोश है.

उधर तेजस्वी से उन्हें गंभीर चुनौती मिल रही है. तेजस्वी की सभाओं में उमड़ती भीड़ इस बात की गवाही दे रही है कि मौजूदा मुख्यमंत्री से जनता खुश नही है. सच कहें तो नीतीश के सामने तेजस्वी कहीं नहीं टिकते. वे सचमुच बच्चे हैं. फिर भी 10 लाख युवाओं को नौकरी देने की घोषणा कर उन्होंने चुनावी एजेंडा सेट कर दिया है. इससे नीतीश की नींद उड़ी हुई है. उनका विकास का एजेंडा धूमिल पड़ता दिख रहा है. नतीजतन वे अपना आपा खोते दिख रहे हैं.

इस सबके बावजूद तेजस्वी नीतीश के विकल्प नहीं हो सकते. यही विकल्पहीनता नीतीश के लिए प्राणवायु का काम करेगी. इसे बिहार जैसे राजनीतिक रूप से सजग प्रदेश का दुर्भाग्य ही माना जायेगा कि नीतीश कुमार के मुख्यमंत्री के रूप में चूक जाने के बाद भी विपक्ष उनका कोई बेहतर विकल्प नहीं दे सका। जनता बदलाव चाहती है, लेकिन वह किसे चुने? ऐसे में अगर नीतीश पुनः CM बनते हैं तो विवशता के मुख्यमंत्री होंगे. और तेजस्वी बनते हैं तो यह और भी बड़ी चूक होगी.

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भाजपा और कांग्रेस जैसी राष्ट्रीय पार्टियां जदयू या राजद की पालकी उठाने को मजबूर हैं. आखिर यह स्थिति क्यों आई? इसपर भी गहन चिंतन की जरूरत है.