यदि बिहार एक देश होता तो आज दुनिया का छठा सबसे गरीब देश होता – पीके
पटना (TBN – अनुभव सिन्हा)| कहा जा सकता है कि आजादी के बाद देश पर सबसे ज्यादा वक्त समाजवादियों की हुकूमत रही. कांग्रेस जैसी समाजवादी पार्टी का अपना आंकड़ा है. उन आंकड़ों ने कांग्रेस के समक्ष ऐसी स्थिति पैदा कर दी कि अब वह अपने अवशेष की राजनीति कर रही है. लेकिन, एक जो ताजा आंकड़ा सामने आया है, उसे आजतक कोई अर्थशास्त्री भी पेश नहीं कर पाया था.
ताजा आंकड़ा जबरदस्त है. जिस भारत की पहचान बिहार (Bihar) की समृद्धि, कौशल, भव्यता से हुई, उसी बिहार के बारे में ताजा आंकड़ा यह बताता है कि यदि बिहार एक देश होता तब वह आज दुनिया का छठा सबसे गरीब देश होता.
यह आंकड़ा प्रशांत किशोर (Prashant Kishore) ने पेश किया है. आंकड़ा यह बताता है कि आजादी के बाद कैसे बिहार अपनी मौलिक विशेषताओं से दूर होता गया, कैसे उसने अपना दर्प, अपना अभिमान, अपनी गरिमा सब लुटते देखता रहा और आज उसकी स्थिति ऐसी हो गई है कि उसकी गरिमा का जिक्र करना तक अवमूल्यित हो चुका है.
जन सुराज पदयात्रा (Jan Suraaj Padyatra) के तहत प्रशांत अभी गोपालगंज जिले (Gopalganj District) में हैं. अभी तक सभी राजनीतिक दलों को जो भी कहते हुए लोगों ने सुना है और सुन-सुनकर जिसके आदी हो चुके हैं, प्रशांत किशोर उससे बिल्कुल उल्टी बात बोल रहे हैं. यह नयी स्थिति है और नेताओं का नकाब उठ रहा है.
प्रशांत किशोर जहां कारण सामने रख रहे हैं, वहीं अभीतक लोगों ने राजनीतिक दलों की सिर्फ घोषणाएं ही सुनी जिसके आधार पर विभिन्न दलों के वोट बैंक बनते चले गए और अब यह माना जा चुका है कि इसमें कोई बदलाव हो ही नहीं सकता.
भारत में लोकतांत्रिक घोषणाएं और समाधान आसमानी होते हैं जबकि समस्यायें जमीन पर होती हैं. किसी भी राजनीतिक दल ने बिहार में समस्याओं एवं उनके कारणों की चर्चा नहीं की, लेकिन लोकतांत्रिक आचरण को स्थायित्व देने के बजाय सत्ता प्राप्ति में वोटों का जुगाड़ करने की तकनीक विकसित कर लेने के बाद अब निश्चिंत हैं. पर कारण तो वैसे के वैसे ही हैं ! इसलिए सभी दलों की अपने-अपने वोट बैंक संबंधी निश्चितताएं हमेशा के लिए हैं, ऐसा नहीं कहा जा सकता.
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बिहार की बहुसंख्यक आबादी ग्रामीण है और उसी के बूते यह पिछड़ा राज्य भी है. प्रशांत किशोर की कोशिश है कि यह बहुसंख्यक आबादी गहरी नींद से जागे, अपने लोकतांत्रिक अधिकार को पहचाने और बताए कि सचमुच सत्ता किसके हाथ में रहे, यह सुनिश्चित करना उसकी जवाबदेही है. राजनीतिक दलों ने गरीबों को गरीब तो कहा लेकिन यह ख्याल भी रखा कि कोई भी गरीब अपनी गरीबी के कारणों को समझ न पाए. अबतक यह इतना ही घिनौना हो चुका है !!
प्रशांत किशोर की बातों को लोग कितना आत्मसात कर रहे हैं, यह इस बात से प्रमाणित होता है कि अपनी यात्रा के अंत में जिस-जिस जिले में उन्होने अधिवेशन का आयोजन किया, वहां, उनके आकलन से ज्यादा लोगों ने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई. पश्चिमी चम्पारण, शिवहर और पूर्वी चम्पारण की एक करोड़ से ज्यादा की जनसंख्या वाले जिलों की समस्याओं का लेखा-जोखा उनके पास उपलब्ध है.
लोगों की समस्याओं का जिक्र जिस तरह से नए ढंग से सामने आ रहा है, वह मौजूदा व्यवस्था से प्रस्थान बिंदू का संकेत देता है. बिहार में जब यह दिखाई पड़ता है कि किस तरह से लालू यादव अपने लाल तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री बनाने पर आमादा हैं, तब यह स्पष्ट होता है कि बिहार की मौजूदा सामंती राजनीति की जकड़न कितनी मजबूत है. लेकिन इसी जकड़न को तोड़ने के लिए प्रशांत किशोर कारणों की जड़ तक पहुंच रहे हैं जिसकी जरुरत आजतक राजद या जदयू ने कभी महसूस तक नहीं की लेकिन येन-केन-प्रकारेण 1990 से अभी तक लालू-नीतीश ने बिहार की सत्ता पर कब्जा बनाए रखा है.