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बिहार को अपने रंग में कितना रंग पायेगा महागठबंधन ?

पटना (TBN – वरिष्ठ पत्रकार अनुभव सिन्हा की रिपोर्ट)| विरोध की राजनीति से शुरू होकर सहमति की राजनीति के अंत की परिस्थिति बिहार में दिखाई दे रही है. लालू यादव (Lalu Yadav) का विरोध करके सीएम बने नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) दूसरी बार राजद (RJD) के साथ सरकार चला रहे हैं. लेकिन 2015 में पहली बार की तुलना में 9 अगस्त 2022 के बाद की राजनीतिक स्थितियां बहुत भिन्न हैं. हालांकि, नरेन्द्र मोदी हटाओ अभियान (Remove Narendra Modi campaign) के लिए बने इंडी अलायंस (INDI Alliance) जैसे राष्ट्रीय विपक्ष का हिस्सा तो हैं ही, लालू-नीतीश दोनों की चाहत बिहार को अपनी मुट्ठी में रखना भी है. लेकिन इनका अंत दोनों के हितों की टकराहट में छिपा है. संयोग से वह मौका भी बिहार आरक्षण कानून (Bihar Reservation Law) के रूप में सामने आ गया है.

इस कानून को लेकर बिहार सरकार पूरे रौ में है. इतनी तेजी पहले दिखाई नहीं पड़ी थी. केन्द्र सरकार को अल्टीमेटम दे दिया गया है. केन्द्र या तो बिहार के आरक्षण कानून को लागू करे, नहीं तो इसे जनता की अदालत में ले जाया जायेगा. 26 नवम्बर को भीम संसद (Bhim Sansad) सह सम्मान समारोह का आयोजन करके इसकी शुरूआत भी कर दी गई है. आरक्षण कानून के मुद्दे को जनता के बीच ले जाने के पीछे का मकसद केन्द्र सरकार और इंडी अलायंस दोनों को एक साथ साधना है. लालू-नीतीश की रणनीतिक तैयारी जैसी भी हो, इसमें अन्तर्विरोध है और उसका संकेत भी उतना ही स्पष्ट है. दोनों मिलकर इसे जितना दबायेंगे, वह उतना ही मुखर होकर सामने आयेगा. यह टकराहट इतनी हो सकती है कि महागठबंधन (grand alliance) का पूरा कुनबा ही बिखर जाए.

अपने हितों को साधने की राजनीति

महागठबंधन सरकार (Mahagathbandhan Government) के मुखिया नीतीश कुमार अपनी राजनीति के अंतिम पड़ाव पर हैं. दूसरी तरफ लालू यादव ने लुंज-पुंज व्यवस्था का पूरा लाभ उठाया और सजायाफ्ता होने के बाद भी राजनीतिक सक्रियता बढाई है जबकि वोट देने के अधिकार तक से वंचित हैं. केन्द्र सरकार या सुप्रीम कोर्ट या फिर चुनाव आयोग किसी ने भी लालू को आड़े हाथ लेना जरूरी नहीं समझा. लालू अपने हितों को साधने की राजनीति कर रहे हैं. अपनी राजनीतिक विरासत पुत्र को सौंपने का सपना देख रहे हैं. एक हित यह भी है कि लोकसभा चुनाव में यदि इंडी अलायंस को सफलता मिल गई तब सुप्रीम कोर्ट से चारा घोटाले (fodder scam) में मिली सजा को माफ करवा लें. लेकिन लालू जैसा स्पष्ट उद्देश्य नीतीश कुमार का नहीं है. वह अपने राजनीतिक जीवन के अंतिम पड़ाव पर तब आए हैं जब आम लोगों के बीच उनकी साख गिरी है, अपमानित हुए हैं और मानसिक अस्थिरता के शिकार हैं.

जातीय संघर्ष की आग में झोंकना ही उद्देश्य

इसलिए यह माना जाना चाहिए कि बिहार आरक्षण कानून का पहला मतलब बिहार को जातीय संघर्ष की आग में झोंकना है. इससे लालू-नीतीश दोनों की राजनीति चमक सकती है. ऐसा इसलिए कि 65% आरक्षण न्यायिक समीक्षा के दायरे में आयेगा और इससे बचने के लिए संविधान की नौवीं अनुसूची (9th Schedule) में डालने हेतु केन्द्र की रजामंदी के लिए बिहार सरकार को पहले आंकडो़ं की सच्चाई बतानी होगी जो संदिग्ध हैं और केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने इसे 500 करोड़ का घोटाला तक बता दिया है. इतना ही नहीं यूपीए-2 ने 2011 की जनगणना के साथ जातीय गणना भी कराई थी और उसे देखते हुए कर्नाटक की कांग्रेस सरकार ने भी 2013 में जातीय गणना कराई, पर उसके निहितार्थों को देख उसे सार्वजनिक तक नहीं किया, जबकि बिहार सरकार ने एक तो आधा-अधूरा सर्वे करा कर सूबे का आंकडा़ जुटाया और उसके आधार पर आरक्षण कानून विधानसभा से पास भी हो गया. अब 65% आरक्षण को नौवीं अनुसूची (Ninth Schedule) में डालने की महागठबंधन सरकार की तैयारी कम और मंशा ज्यादा साफ नजर आती है जो राजनीति से प्रेरित है. इस आरक्षण कानून के जरिए दलितों, पिछडो़ं, अनुसूचित जाति और जनजाति का वोट हथियाने की ही राजनीति बिहार में आने वाले दिनों में दिखाई पड़ने वाली है.

नीतीश की मानसिक बीमारी का इशारा

ला ग्रेजुएट लालू और बी.टेक नीतीश कुमार ने अपने शिक्षण से अलग जिस कैरियर का चयन किया उससे दोनों के अध्ययन की गुणवत्ता भी सामने आती है. लालू का चारित्रिक पक्ष तो बहुत पहले आदतन अपराधी के रूप में सामने आ चुका है, लेकिन नीतीश कुमार ने भी पीछे रहना मुनासिब नहीं समझा और अपनी कथित महिला सशक्तिकरण की सफलता के आवेग में बिहार की नारी शक्ति का आक्रोश झेल रहे हैं. यह दूसरी बात है कि चिकित्सक नीतीश की मानसिक बीमारी का इशारा करते हैं. लेकिन आरक्षण कानून को लेकर दोनों की सक्रियता बताती है कि लोगों के बीच भ्रम फैलाने और झांसा देने में बहुत आगे हैं. वैसे भी अपने-अपने तरीके से लालू-नीतीश दोनों ने जाति की जमकर राजनीति की है और अब तो जाति के नाम पर बिहार को ही जातीय संघर्ष की आग में झोंकने की तैयारी है. ऐसे में यह गहन चिंतनीय है कि गरीबी को अपना भाग्य मान लेने वाली बिहार की जनता को अभी नीतीश-लालू की वजह से कैसे-कैसे दिन देखने पड़ सकते हैं.