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सत्य-अहिंसा पर पीएचडी, 23 अपराधों का दिया हलफनामा…

पटना (The Bihar Now डेस्क)| पूर्व बाहुबली विधायक सुनील पांडेय ने रविवार को अपने बेटे विशाल प्रशांत के साथ बीजेपी की सदस्यता ग्रहण की. सुनील पांडेय समता पार्टी से एक बार और जदयू से दो बार विधायक रहे चुके हैं. कयास लगाए जा रहे हैं कि बीजेपी अगले साल होने वाले बिहार विधानसभा चुनाव में उन्हें तरारी सीट से उम्मीदवार घोषित कर सकती है.

बीजेपी में शामिल होने के बाद सुनील पांडेय एक बार फिर बिहार की राजनीति में चर्चा का केंद्र बन गए हैं. वैसे सुनील पांडे किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं. सुनील पांडे की पहचान बिहार के बाहुबली नेताओं में होती है. वह पीरो (अब तरारी) सीट से तीन बार विधायक रह चुके हैं.

रोहतास जिले के नावाडीह गांव के भूमिहार जाति से कमलेशी पांडेय के बेटे हैं नरेंद्र पांडेय जिन्हें आज बिहार की राजनीति में सुनील पांडेय के नाम से जाना जाता है. लालू के शासनकाल में कमलेशी पांडेय रोहतास में बालू निकालने के छोटे-मोटे ठेके लेते थे.

कमलेशी पांडेय ने नरेंद्र पांडेय उर्फ सुनील पांडेय का एडमिशन बेंगलुरु में कराया था ताकि उनका बेटा पढ़ लिखकर समाज में बढ़िया मुकाम हासिल करें. लेकिन इसी बेंगलुरु शहर में किस्मत ने ऐसा खेल खेला कि सुनील पांडेय का पूरा लाइफ ट्रैक ही बदल गया. जानकार बताते हैं कि बेंगलुरु में रहने के दौरान ही सुनील पांडेय की एक लड़के से झगड़ा हो गया था. इस लड़ाई में सुनील पांडेय ने उस लड़के को चाकू मार दिया. इसके बाद वह वापस रोहतास स्थित नावाडीह अपने घर आ गए.

जब सुनील ने ली अपराध की दुनिया की पहली क्लास

उस समय रोहतास और आसपास के इलाकों में आरा के रहने वाले सिल्लू मियां की तूती बोलती थी. सिल्लू मियां सिवान के बाहुबली सांसद शहाबुद्दीन के करीबियों में होती थी. इसी बीच, सुनील पांडेय की पहचान सिल्लू मियां से हुई और वो जल्द ही सिल्लू मियां के राइट हैंड बन गए. बताया जाता है कि सिल्लू मियां की पाठशाला से ही सुनील पांडेय ने अपराध की दुनिया की पहली क्लास ली थी.

एकछत्र राज कायम

समय के साथ, आगे बढ़ने की चाह के कारण सिल्लू मियां और सुनील पांडेय की दोस्ती में दरार आ गई. इसी दौरान एक दिन सिल्लू मियां का मर्डर हो गया जिसमें सुनील पांडेय का नाम सामने आया, लेकिन किसी भी प्रकार का सबूत न होने के कारण कोई केस दर्ज नहीं हुआ. इस घटना के बाद से सुनील पांडेय की आरा और उसके आसपास के इलाकों में तूती बोलने लगी साथ ही आरा उसके आसपास के इलाकों में बालू के ठेके पर सुनील पांडेय का एकछत्र राज कायम हो गया.

दो बार जदयू से एमएलए

सुनील पांडेय चार बार विधायक रह चुके हैं. दो बार वह जदयू से और एक बार समता पार्टी से विधायक रह चुके हैं. सबसे खास बात यह कि सुनील पांडेय भगवान महावीर पर पीएचडी कर चुके हैं और अपने नाम के आगे डॉक्टर भी लगते हैं. पहली बार पीरो निर्वाचन क्षेत्र से सन 2000 में चुनाव जीत कर बिहार विधानसभा पहुंचे. इसके बाद उन्होंने अपनी जीत का लय बरकरार रखा. 2005 में फरवरी में हुए विधानसभा चुनाव में उन्होंने 35 हजार से भी ज्यादा मतों से जीत दर्ज की, लेकिन किसी भी दल को बहुमत नहीं मिलने के कारण राष्ट्रपति शासन लगा. इसके कुछ ही दिनों के बाद बिहार विधानसभा को भंग कर दिया गया.

इसी साल अक्टूबर महीने में फिर चुनाव हुए. इस चुनाव में एनडीए ने सत्ता में अपनी वापसी की. यही साल था जब सुनील पांडेय जदयू में चले गए और फिर जीत दर्ज करने में सफल रहे. 2015 में सुनील पांडेय ने फिर पार्टी बदली और रामविलास पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी में शामिल हो गए. इस पार्टी में उन्हें प्रवक्ता बनाया गया.

रणवीर सेना प्रमुख ब्रह्मेश्वर मुखिया से हुई तनातनी

बिहार की राजनीति में 90 के दशक में रणवीर सेना, जिसमें ज्यादातर सदस्य भूमिहार जाति के थे, के प्रमुख मुखिया जी यानी ब्रह्मेश्वर मुखिया थे. इसी दौर में सुनील पांडेय भी रणवीर सेना के साथ जुड़ गए. 1993 में घटी एक घटना के बाद सुनील पांडेय और ब्रह्मेश्वर मुखिया आमने सामने आ गए थे. यह घटना थी एक ईंट भट्टे की मालिक की हत्या के बारे में.

बताया जाता है कि जनवरी 1997 में तरारी प्रखंड के बागर गांव में एक साथ तीन लोगों को मार दिया गया था. इसका इल्जाम मुखिया जी पर लगा था. इन मरने वालों में एक महिला भी थी. सभी मृतक भूमिहार जाति से थे. बताया जाता है कि मृतक महिला सुनील पांडेय की करीबी रिश्तेदार थी. इसके बाद सुनील पांडेय और ब्रह्मेश्वर मुखिया के बीच जो तनातनी शुरू हुई वह लगातार जारी रही. एक जून 2012 को जब मुखिया जी की हत्या हुई, तब तक सुनील पांडेय और मुखिया जी में तनातनी कायम रही.

चुनावी हलफनामा बना चर्चा का विषय

सुनील पांडेय द्वारा 2010 के विधानसभा चुनाव में दिया गया चुनावी हलफनामा चर्चा का विषय बन गया था. इस चुनावी हलफनामे में उन्होंने 23 आपराधिक मुकदमों का हवाला दिया था. इनमें हत्या की कोशिश, लूट, अपहरण, डकैती और रंगदारी जैसे मामले थे. खास बात यह कि तब सीएम नीतीश कुमार ने सुनील पांडेय को टिकट दिया था, हालांकि तब सीएम नीतीश कुमार के इस फैसले पर सबको हैरानी भी हुई थी.

आरा कोर्ट ब्लास्ट मामला

2015 की 30 जनवरी को आरा के सिविल कोर्ट में एक ब्लास्ट हुआ था. इस ब्लास्ट में दो लोगों की जान चली गयी थी. ब्लास्ट के बाद सिविल कोर्ट से लंबू सिंह और अखिलेश उपाध्याय नाम के दो कैदियों के फरार होने की भी खबर सामने आई. इस मामले की जब जांच हुई, तब यह सामने आया कि लंबू सिंह ने हीं इस घटना को अंजाम दिया था. हालांकि 2015 के जून माह में लंबू सिंह दिल्ली पुलिस के शिकंजे में आ गया. जब पुलिस ने उससे पूछताछ की तो उसने बताया कि जेल से फरार होने में उसकी मदद सुनील पांडेय ने की थी. इसके बाद सुनील पांडेय को एसपी ने अपने अपने ऑफिस बुलाया और गिरफ्तार कर लिया.

डॉक्टर अपहरण कांड

मार्च 2003 में पटना के रहने वाले और देश के जाने-माने न्यूरो सर्जन में शुमार डॉक्टर रमेश चंद्र का अपहरण हो गया जिसमें अपहरण कर्ताओं ने फिरौती के रूप में 50 लाख रुपए मांगे थे. हालांकि बिहार पुलिस ने हाई प्रोफाइल मामले को देखते हुए तेजी दिखाई और राजधानी के ही नौबतपुर इलाके से डॉक्टर रमेश चंद्र को खोज निकाला.

इस केस में जब तफ्तीश हुई तो सुनील पांडेय का नाम सामने आया. तब सूबे में राजद की सरकार थी और सुनील पांडेय समता पार्टी से विधायक थे. इस मामले में 2008 में सुनील पांडेय के साथ तीन अन्य लोगों को उम्र कैद की सजा भी हुई लेकिन जब यह मामला हाई कोर्ट पहुंचा तो उन्हें बरी कर दिया गया.

ब्रह्मेश्वर मुखिया की हत्या में नाम !

जून 2012 को रणवीर सेवा के प्रमुख ब्रह्मेश्वर मुखिया की हत्या हो गई. इस घटना से पूरा प्रशासनिक तंत्र हिल गया था. अति संवेदनशील मामले को देखते हुए तेज तर्रार पुलिस अफसरों की टीम ने जांच शुरू की. सब तब भौंचक हो गए जब पुलिसिया जांच में सुनील पांडेय का नाम सामने आया. हालांकि पुलिस ने भी तत्परता दिखाते हुए सुनील पांडेय के ड्राइवर को अरेस्ट कर लिया. इसी मामले में सुनील पांडेय के भाई और तत्कालीन विधान परिषद के निर्दलीय सदस्य हुलास पांडे को भी हिरासत में लिया गया था, लेकिन बाद में रिहा कर दिया गया.