चुनाव भारत में और चर्चा दुनिया भर में
पटना (TBN – वरिष्ठ पत्रकार अनुभव सिन्हा खास की रिपोर्ट)| लोकसभा चुनाव भारत में होंगे, पर इसकी चर्चा दुनिया भर में हो रही है. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की वैश्विक स्वीकार्यता (Global acceptance of Prime Minister Narendra Modi) जहां इस चर्चा का एक सकारात्मक पक्ष है दो दूसरी तरफ उस ताकत ने विश्व का ध्यान अपनी ओर खींचने की कोशिश की है जो मोदी की स्वीकार्यता को वैश्विक भूल बताने की एक और कोशिश में लगा है. चर्चा का यह पहलू नकारात्मक है.
कल यानि बीते गुरूवार को तीन जानकारियां सामने आईं. अमेरिका स्थित पीऊ रिसर्च सेंटर (US-based Pew Research Center) का एक सर्वे पहली जानकारी के रूप में सामने आया. दूसरी जानकारी मुम्बई में राहुल गांधी (Congress leader Rahul Gandhi) ने दी. और तीसरी जानकारी यह है कि 18 से 22 सितम्बर तक संसद का विशेष सत्र (special session of parliament) आहूत किया गया है. ये तीनों जानकारियां एक-दूसरे से बडी़ गहराई से जुडी़ हैं. पर, पहले चर्चा पीऊ रिसर्च सेंटर के सर्वे की.
अमेरिका स्थित पीऊ रिसर्च सेंटर एक लब्ध-प्रतिष्ठित संस्था है जो देश-दुनिया की स्थिति की जानकारी पड़ताल और सर्वे कर निष्पक्षतापूर्वक उपलब्ध कराती है. अमेरिका में इस संस्था की प्रतिष्ठा थिंक टैंक की है.
भारत में चुनाव होने हैं. पीऊ ने भारत और दुनिया में नरेन्द्र मोदी की स्वीकार्यता पर इसी साल फरवरी-मई में एक सर्वे किया. याद करें, उसके पहले जनवरी में हिण्डनबर्ग की रिपोर्ट (Hindenburg Report) आ चुकी थी. पीऊ ने अपने सर्वे के सूक्ष्म अध्यन के बाद अपनी रिपोर्ट जारी की है. इस रिपोर्ट के आने के बाद विपक्ष (कांग्रेस) की नींद उड़ चुकी है.
पीऊ की इस रिपोर्ट के अनुसार नरेन्द्र मोदी की वैश्विक स्वीकार्यता 46% है. पर भारत में इस रिपोर्ट ने कांग्रेस को हलकान करके छोड़ दिया है. देश में लगातार गिर रही उसकी साख के बीच पीऊ की रिपोर्ट ने जैसै उसके हाथ से तोते को उडा़ दिया है. भारत में नरेन्द्र मोदी और राहुल गांधी को क्रमशः 55 और 26% एक्टिव सपोर्ट है. जबकि, राहुल गांधी के लिए पैसिव सपोर्ट 36 और नरेन्द्र मोदी के लिए 24% है. इस तरह नरेन्द्र मोदी को जहां 79% लोगों का समर्थन है वहीं राहुल गांधी का 62% लोग समर्थन करते हैं.
हालांकि, 17% का बडा़ फासला फिर भी है लेकिन कांग्रेस पर टूटा पहाड़ दूसरा है. कर्नाटक चुनाव जीत कर अपबीट मोड में आ चुकी कांग्रेस ने शायद ही सोचा हो कि इतना बडा़ ब्रेकर उसके मार्ग में आयेगा. पीऊ सर्वे रिपोर्ट से कांग्रेस के सामने यही मुश्किल खडी़ हो गई है. राहुल गांधी की 62% स्वीकार्यता न कांग्रेसी पचा पा रहे हैं और न I.N.D.I.A. में शामिल सभी क्षेत्रीय दल. इंडिया में कांग्रेस ही एकमात्र राष्ट्र स्तरीय पार्टी है. इसलिए वह अपनी इस हैसियत की प्रमुखता भी बनाए रखना चाहती है जिसका प्रकारान्तर से यह मतलब है कि सभी क्षेत्रीय दल राहुल का नेतृत्व स्वीकार कर लें. पर इंडिया में शामिल एक भी क्षेत्रीय दल नहीं है जो ऐसा चाहता है. अब, चुनाव तो राज्यों मे ही होंगे. क्या करे कांग्रेस, उसके सामने यह सवाल है.
OCCRP का खुलासा
अब चर्चा उस दूसरी जानकारी की जिसे राहुल गांधी ने गुरूवार को दी थी. आर्गनाइज्ड क्राइम एण्ड करप्शन रिपोर्टिंग प्रोजेक्ट (OCCRP) नामक विदेशी पत्रकारों की एक संस्था के खुलासे की जानकारी राहुल गांधी ने मुम्बई में पत्रकार सम्मेलन में दी. इरादा सुर्खियां बटोरने का था. ओसीसीआरपी के खुलासे के मुताबिक गौतम अडाणी (Gautam Adani) के परिजनों ने विदेशों में पैसा लगाया और फिर उसी पैसों को भारत में लगाकर भारी मुनाफा कमाया. यह दरअसल जनवरी में आई हिण्डनबर्ग रिपोर्ट का ही रिपीट है. गौतम अडाणी की तरफ से तत्काल खण्डन किया गया, लेकिन राहुल की सुर्खियां बटोरने की जो मंशा थी, उसपर प्रधानमंत्री ने पानी फेर दिया.
I.N.D.I.A. की बैठक
गौर कीजिए. पिछले तीन-चार दिनों से विपक्ष गदगद था. चारों तरफ 31 अगस्त और 1 सितम्बर को मुम्बई में होने वाली इंडिया (I.N.D.I.A.) की बैठक की ही चर्चा थी. विपक्षी दलों को भी यह लगता रहा कि देश की निगाहें उस पर ही टिकी हैं. पर बैठक के पहले दिन ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की तरफ से एक ऐसी घोषणा की गई जिससे सारा ध्यान उस ओर चला गया. घोषणा यह थी कि संसद का विशेष सत्र आहूत किया गया है जो 18 से 22 सितम्बर तक होगा.
विपक्षी दलों की सारी रणनीति चौपट
इस घोषणा ने विपक्षी दलों की सारी रणनीति ही चौपट कर दी. किसी को नहीं पता कि मोदी ने विशेष सत्र क्यों बुलाया है. पांच दिनों में कुल दस बैठकें होंगी और महत्वपूर्ण विषयों पर चर्चा होगी. पर किन विषयों पर चर्चा होगी, यह किसी को नहीं पता. वैसे में कयास लगाए जा रहे हैं. मान लीजिए लोकसभा चुनावों को विधानसभा चुनावों के साथ कराए जाने का भी एक विषय हो तब ? अंदाजा लगाया जा सकता है कि विपक्ष कितना गश खायेगा. यदि सचमुच ऐसा हुआ तो विपक्ष के सामने वक्त की भारी किल्लत हो जायेगी और उसे खुद को इस लिहाज से तैयार करना पडे़गा, जिसके बारे में उसने सोचा तक नहीं था. कहां पांच विधानसभा चुनावों में जीत दर्ज कर मोदी को चुनौती देनी थी, वहीं अब उसके सामने वक्त के लाले पड़ सकते हैं.