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नाखुशी के बावजूद नीतीश के पास I.N.D.I.A. ब्लॉक के साथ जाने के अलावा कोई विकल्प नहीं

पटना (TBN – The Bihar Now डेस्क)| हाल ही में तीन राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों के नतीजों ने बिहार में कांग्रेस (Congress) और जदयू (JDU) के लिए खतरे की घंटी बजा दी है. अंततः इन चुनाव नतीजों ने विपक्षी दलों को 2024 में लोकसभा चुनाव (Lok Sabha election in 2024) से पहले एकजुट होने के लिए मजबूर कर दिया है.

पटना, बेंगलुरु और मुंबई में इंडिया ब्लॉक (I.N.D.I.A. bloc) की तीन बैठकों के बाद यह स्पष्ट हो गया था कि कांग्रेस पार्टी (Congress party) का पलड़ा भारी है. इतना ही नहीं, इंडिया ब्लॉक में शामिल अन्य दलों के नेता सोच रहे थे कि 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए सीट बंटवारे की बातचीत में कांग्रेस का दबदबा रहेगा. लेकिन, तीन राज्यों में मिली हार ने सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस की स्थिति कमजोर कर दी है.

जदयू की उम्मीदों पर फिर गया पानी

2024 के लोकसभा चुनाव के लिए जेडीयू (JDU) की तरफ से नीतीश कुमार (Nitish Kumar) को इंडिया ब्लॉक के संयोजक पद की उम्मीद की जा रही थी. लेकिन बिहार विधानसभा के शीतकालीन सत्र के दौरान नीतीश के द्वारा दिए गए महिला विरोधी और दलित विरोधी बयान उनके खिलाफ चले गए. इस कारण इंडिया ब्लॉक की 19 दिसंबर को नई दिल्ली में हुई चौथी बैठक से उन्हें खाली हाथ वापस लौटना पड़ा.

जनता के बीच आम धारणा है कि नीतीश कुमार परिस्थितियों के अनुसार अपना लक्ष्य बदल लेते हैं, लेकिन इस बार उनके लिए बहुत देर हो चुकी है. इस बार उन्हें कम से कम लोकसभा चुनाव तक इंडिया गुट के साथ रहना ही होगा.

सच पूछा जाए तो अभी बिहार में भाजपा को चुनौती देने के लिए जद (यू) और कांग्रेस पार्टी के लिए ‘एक सीट, एक उम्मीदवार’ फॉर्मूले (‘one seat, one candidate’ formula) के साथ जाने के लिए के लिए सही समय है.

ललन सिंह का बयान

हालांकि, जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह (Lalan Singh, JDU National President) ने कहा है कि नई दिल्ली में इंडिया ब्लॉक की बैठक सफल रही और हम तीन सप्ताह के भीतर सभी राज्यों में सीट बंटवारे के फॉर्मूले को अंतिम रूप दे देंगे. काम प्रगति पर है और हम ऐसे उम्मीदवारों का चयन करेंगे जो लोकसभा चुनाव 2024 में भाजपा को हराने में सक्षम होंगे.

उन्होंने कहा, “बीजेपी नेता कह रहे हैं कि इंडिया ब्लॉक ने प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में नीतीश कुमार का नाम प्रस्तावित नहीं किया है, मैं बीजेपी से पूछना चाहता हूं कि क्या नीतीश कुमार ने आपको बताया था कि वह प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार हैं. वे बिना किसी आधार के बात करते हैं.”

नीतीश कर सकते हैं कड़ी सौदेबाजी

राजनीतिक समीक्षकों के अनुसार, नीतीश कुमार अभी भी मानते हैं कि उन्हें इंडिया ब्लॉक की चौथी बैठक से वांछित परिणाम नहीं मिला. इस कारण अब वह राजद और कांग्रेस के साथ कड़ी सौदेबाजी करेंगे.

सूत्रों ने कहा कि कांग्रेस के वरिष्ठ नेता राहुल गांधी ने इंडिया ब्लॉक की चौथी बैठक के बाद नीतीश कुमार से फोन पर बात की लेकिन बातचीत का विषय सामने नहीं आया. हालांकि, माना जा रहा है कि राहुल गांधी द्वारा नीतीश कुमार से 2015 के विधानसभा चुनाव के जैसे अपने पूरे दमखम के साथ चुनाव लड़ने के लिए मनाने की कोशिश की गई.

सीटों का बंटवारा

बता दें, बिहार में लोकसभा की 40 सीटें हैं और जदयू और राजद द्वारा सबसे ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ा जाएगा. वैसे तो जदयू और राजद के नेताओं ने तो कुछ नहीं कहा है लेकिन सूत्रों का कहना है कि जदयू बिहार में 17 से 18 सीटें चाहता है और राजद नेता भी यही सोच रहे हैं. इन दोनों पार्टियों के नेता 2015 के विधानसभा चुनाव का फॉर्मूला अपना सकते हैं, जब उन्होंने 100-100 सीटों पर चुनाव लड़ा था और बाकी 43 सीटें कांग्रेस पार्टी को दी थीं. इस बार वे 17 से 18 सीटों पर चुनाव लड़ना चाहते हैं और बाकी छह या चार सीटें कांग्रेस और वाम दलों को देना चाहते हैं.

ऐसी भी संभावना है कि लोकसभा में 16 सांसदों वाली जद(यू), इस बार भी 16 सीटों पर सहमत हो सकती है और राजद (RJD) को 16 सीटें मिलेंगी और शेष आठ सीटें कांग्रेस और वाम दलों के बीच वितरित की जाएंगी.

जब दो ताकतें एक साथ होंगी तो..

बिहार में तीन राजनीतिक ताकतें हैं, यानी राजद, जद (यू) और भाजपा. हर कोई जानता है कि यहां जब दो ताकतें एक साथ होती हैं तो वे चुनाव जीत जाती हैं, जब तक कि कोई कमजोर प्रदर्शन न करे या भाजपा के लिए बल्लेबाजी न करे, जैसा कि एलजेपी ने 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में किया था.

2015 के विधानसभा चुनाव में महागठबंधन ने भाजपा को आसानी से हरा दिया था, जब जदयू और राजद कांग्रेस पार्टी के साथ गठबंधन सहयोगी थे. उस वक्त मोदी लहर अब से कहीं ज्यादा मजबूत थी. इसी तरह जब 2020 के विधानसभा चुनाव में जद (यू) और भाजपा एक साथ थे, तो उन्होंने इसमें जोरदार जीत हासिल की. 2019 का लोकसभा चुनाव भी इसका उदाहरण था जब जेडीयू और बीजेपी ने एलजेपी के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था और बिहार की 40 में से 39 सीटों पर जीत हासिल की थी.

हालांकि हाल के तीन विधानसभा चुनावों में प्रचंड जीत के बाद भगवा ब्रिगेड का मनोबल ऊंचा है, लेकिन उसे 2024 से पहले सतर्क रहने की जरूरत है, खासकर बिहार में.

भाजपा को करना पड़ सकता है संघर्ष

भाजपा हमेशा भ्रम पैदा करने के लिए विपक्षी खेमे में कमियां ढूंढना पसंद करती है और अगर राजद और जद (यू) 2015 के विधानसभा चुनाव की तरह एक साथ लड़ेंगे, तो भाजपा को यहां संघर्ष करना पड़ सकता है.

भाजपा बिहार में शराबबंदी की विफलता के कारण बढ़ते अपराध और जहरीली शराब की घटनाओं का मुद्दा लगातार उठा रही है और कह रही है कि नीतीश कुमार के नेतृत्व में राज्य में जंगल राज लौट आया है.

बिहार भाजपा अध्यक्ष सम्राट चौधरी ने कहा है कि नीतीश कुमार के शासन में, न केवल आम आदमी बल्कि पुलिस भी अपराधियों के निशाने पर है. बेगूसराय में एक एएसआई की हत्या इसका प्रमुख उदाहरण है क्योंकि शराब माफिया ने उन्हें ड्यूटी के दौरान कुचल दिया.

हालाँकि, बिहार जैसे अविकसित राज्य में, जाति कारक ही एकमात्र ऐसी चीज है जिसे मतदाता किसी भी चुनाव के दौरान ध्यान में रखते हैं. इस राज्य में अन्य मुद्दे जैसे नौकरियां, औद्योगीकरण, किसान और अन्य समस्याएं गौण हैं. यही कारण है कि राजद आरामदायक स्थिति में है क्योंकि सभी जानते हैं कि लालू प्रसाद और तेजस्वी यादव किसी भी कीमत पर भाजपा के खिलाफ लड़ेंगे.

बताते चलें, लालू प्रसाद ने अपने पूरे राजनीतिक जीवन में कभी भी भाजपा और आरएसएस से समझौता नहीं किया. इसी कारण हो सकता है कि हाल ही में संपन्न जाति सर्वेक्षण के अनुसार मुसलमान और यादव, जिनकी संख्या सबसे अधिक (मुस्लिम 17.7 प्रतिशत और यादव 14 प्रतिशत) है, बिहार में निर्णायक तौर पर राजद को ही वोट देंगे. अगर बिहार में 4.21 फीसदी वोटर वाले कोइरी और 2.87 फीसदी वोटर वाले कुर्मी (लव-कुश) एक हो जाएं तो बीजेपी को आसानी से हराया जा सकता है.