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जातीय जनगणना की मांग अपनी नेतागिरी चमकाने की राजनीति ! – प्रवीण बागी

पटना ( वरिष्ठ पत्रकार प्रवीण बागी की कलम से) | अनेक राजनीतिक दलों द्वारा जातीय जनगणना कराने के लिए केंद्र सरकार पर दबाव बनाया जा रहा है. उनका मानना है कि जातियों की जनसंख्या का सही आंकड़ा होने से उनके विकास के लिए नीतियां बनाने में सहूलियत होगी. जनसंख्या के हिसाब से उनकी राजनीतिक हिस्सेदारी तय होगी. उनके आर्थिक -सामाजिक विकास के उपाय ढूंढे जायेंगे.

लेकिन ये सारे तर्क खोखले हैं. इनमें रंच मात्र भी सच्चाई नहीं है. मंशा पिछड़ों -दलितों का विकास नहीं बल्कि अपनी राजनीति चमकाना है. समाजवादी धारा से छिटक कर जातीय राजनीति करनेवाले नेता इसके अगुआ बने हुए हैं. जाति तोड़ो आंदोलन चलाने वाले नेता आज जातिय पहचान मजबूत करने के लिए काम कर रहे हैं.

वरिष्ठ पत्रकार प्रवीण बागी

आजादी के बाद एससी/ एसटी के लिए शिक्षा से लेकर नौकरियों और विधायिका तक में स्थान आरक्षित किये गए. फिर ओबीसी के लिए शिक्षा और नौकरियों में आरक्षण हुआ. लेकिन इस आरक्षण का कितना लाभ इन जातियों तक पहुंचा, इसका कभी अध्ययन नहीं किया गया. अगर अध्ययन हुआ होता तो आरक्षण का सच सामने आ जाता और जातीय जनगणना की मांग करनेवाले बंगले झांकते होंगे. सच यह है की आरक्षण का फायदा अभी भी जरूरतमंदों तक नहीं पहुंच सका है. एक समूह है जो पीढ़ी दर पीढ़ी आरक्षण का लाभ ले रहा है. लाभान्वित समूह भी नहीं चाहता की उसके समाज के सभी लोग आरक्षण का लाभ उठा सकें.

आरक्षण को लेकर आंखे खोलने वाला एक आंकड़ा आया है. केंद्र सरकार के आंकड़े के मुताबिक केंद्रीय सेवाओं में आरक्षित वर्ग करीब 9 लाख पद वर्षों से रिक्त हैं. वजह यह बताई गई है की उन पदों के लिए तय मापदंड के अनुसार उम्मीदवार नहीं मिल रहे. इससे समझा जा सकता है की आरक्षण का कितना फायदा जरूरतमंदों को मिल रहा है. इसके बारे में कोई राजनेता नहीं बोलना चाहता. आरक्षित वर्ग को नौकरी पाने योग्य बनाने की बात क्यों नहीं होती? इसलिए की इसमें राजनीतिक फायदा नहीं है. अगर वे पढ़ लिख कर योग्य हो गए तो दलितों -पिछड़ों के नाम पर राजनीति चमकाने वालों की राजनीति खत्म हो जायेगी. इसलिए अच्छा है की इस पर चुप्पी साधे रहो.

कितना भी आरक्षण दे दें लेकिन जबतक उन्हें शिक्षित नहीं किया जायेगा तबतक वे आरक्षण का लाभ नहीं ले पाएंगे. जातीय जनगणना की मांग करनेवाले दलों के नेतृत्व को देखिये. अधिकांश दल पारिवारिक नियंत्रण में हैं. क्यों नहीं परिवार के बाहर के लोगों को मौका दिया जाता?

जातीय जनगणना की मांग अपनी नेतागिरी चमकाने की राजनीति है,, दलितों -पिछड़ों को चमकाने की नहीं. इसे समझना होगा.
(उपरोक्त लेखक के अपने विचार हैं)