Big NewsBreakingPatnaPoliticsफीचर

नीतीश के दलित कार्ड से चिराग की बढ़ी परेशानी; लिखा पत्र

पटना (TBN – The Bihar Now डेस्क) | किसी दलित की हत्या होने की स्थिति में उसके परिवार को सरकारी नौकरी देने की बिहार सरकार की घोषणा के बाद लोक जनशक्ति पार्टी अध्यक्ष चिराग पासवान ने नीतीश को पत्र लिखा है.

बता दें कि नीतीश कुमार ने बिहार विधानसभा चुनाव से पहले एक बड़ा दलित कार्ड खेला है. उन्होंने काफी सोच समझकर अपने अधिकारियों को ऐसा प्रावधान बनाने का निर्देश दिया जिसमें किसी अनुसूचित जाति-जनजाति की हत्या हो जाने पर उसके परिवार के किसी एक सदस्य को सरकारी नौकरी दी जाए. सीएम नीतीश ने अफसरों से कहा कि तत्काल इसके लिए नियम बनाएं, ताकि पीड़ित परिवार को लाभ दिया जा सके.

नीतीश के इस फैसले से चिराग पासवान की परेशानी बढ़ गई है. इसपर दलितों ने चिराग से कुछ सवाल उठाए जिसके बाद चिराग ने नीतीश कुमार को पत्र लिखा है. चिराग ने पूछा है कि यदि यह चुनावी घोषणा नहीं है तो पिछले 15 साल में जितने भी दलितों की हत्या हुई है सभी परिजनो को सरकार नौकरी दे.

चिराग ने नीतीश को पत्र में लिखा है, “अनुसुचित जाति-जनजाति (SCST) समाज का कहना कि इसके पूर्व 3 डिसमिल ज़मीन देने का वादा भी सरकार ने नहीं किया था पूरा जिससे एससीएसटी समाज को निराशा प्राप्त हुई थी”.

चिराग पासवान ने लिखा है कि हत्या एक अपराध है और अपराधियों में डर न्याय प्रक्रिया का होना चाहिए ताकि हत्या जैसे जघन्य अपराध से बचे. अनुसुचित जाति-जनजाति ही नही बल्कि किसी वर्ग के किसी भी व्यक्ति की हत्या न हो इस दिशा में भी कठोर कदम उठाने की जरूरत है.

उन्होंने दलितों की तरफ से नीतीश से मांग की है कि पिछले 15 साल में जितने भी एससी- एसटी के हत्या का मामला न्यायालय में लम्बित है उन्हें फ़ास्ट ट्रैक कोर्ट को सौंपा जाए.

चिराग ने लिखा है कि इन दोनों मांगों के साथ लोक जनशक्ति पार्टी सहमत है. लोजपा की यह माँग माँगने से सरकार पर सम्पूर्ण बिहारी का विश्वास बढ़ेगा अन्यथा जनता इसको मात्र चुनावी घोषणा मानेगी. इसलिए उन्होंने नीतीश कुमार से लोजपा की माँग का समर्थन करने को कहा है.

बिहार में दलित समीकरण

राज्य में दलित जातियों की 16 प्रतिशत भागीदारी (2011 की जनगणना के अनुसार) है. 2005 में नीतीश कुमार की सरकार ने 22 में से 21 दलित जातियों को महादलित घोषित कर दिया था और 2018 में पासवान भी महादलित वर्ग में शामिल हो गए. इस हिसाब से बिहार में अब दलित के बदले महादलित जातियां ही रह गई हैं.