अपने हितों को लेकर भ्रष्टाचारियों के गठबंधन की टकराहट बढ़ी
पटना (TBN – वरिष्ठ पत्रकार अनुभव सिन्हा की स्पेशल रिपोर्ट)|| कानून के खौफ से इकट्ठा हुए भ्रष्टाचारियों की जमात I.N.D.I. गठबंधन (I.N.D.I.A.) अपने मकसद में कामयाब होगा, यह सवाल खडा़ हो गया है. पश्चिम बंगाल, बिहार, महाराष्ट्र, दिल्ली, पंजाब, कर्नाटक, तमिलनाडू जैसे राज्यों में इस जमात की परतें खुलती जा रही हैं. I.N.D.I. गठबंधन में शामिल प्रत्येक दल अपने हितों को बचाने में लगा है. इसलिए सीट शेयरिंग की बात शुरु होने की स्थिति नहीं बन पा रही है. कांग्रेस पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों के बाद ही सीट शेयरिंग पर बात करेगी. इसका असर हर राज्य के क्षेत्रीय दलों पर साफ दिखाई दे रहा है.
सबसे पहले बात बिहार की. विपक्षी दलों की एकजुटता का प्रयास यहीं से शुरु हुआ था. 23 जून को बिहार में हुई पहली बैठक के बाद महज तीन महीने में यह सवाल सामने आया कि यह गठबंधन जो दावा कर रहा है उसे पूरा कर पायेगा या नहीं! एक लाईन में समझने की बात यह है कि 29 सितम्बर की सुबह लालू यादव, नीतीश कुमार से मिलने उनके आवास पर गए और दोनो के बीच बातचीत हुई. खुद को चतुर सुजान समझने वाले लालू नीतीश कुमार से इसलिए मिलने गए क्योंकि उनको बात बिगड़ती हुई नजर आने लगी है.
लालू-नीतीश के पालिटिकल कैरियर की समानता यह है कि दोनो का राजनीतिक जीवन दांव पर लगा हुआ है. नीतीश कुमार पर भ्रष्टाचार का आरोप नहीं है जबकि लालू ने अपने पूरे राजनीतिक जीवन में सिर्फ भ्रष्ट आचरण ही किए. इसलिए लालू का हित नीतीश के हित से अलग है. नीतीश कुमार आज जिस राजनीतिक भंवर में फंसे है, यह उनकी कार्यशैली का परिणाम है जबकि लालू यादव भ्रष्टाचार के कारण कानून से खौफजदा हैं.
इस खौफ से जूझ रहे लालू के लिए लोकसभा चुनाव में I.N.D.I. गठबंधन की मजबूती जरुरी है और उससे ज्यादा जरुरी है बिहार में उनका मजबूत होना. लेकिन राजनीतिक पेंच भी उतना ही जबरदस्त है. नीतीश कुमार यह जान चुके हैं कि लालू के रहते I.N.D.I. गठबंधन में उन्हे वह हासिल नहीं हो सकता जो वह चाहते रहे. उनकी चाहत तथ्यात्मक भूल बनकर तब सामने आई जब सुप्रीम कोर्ट से राहुल गांधी को राहत मिल गई. लेकिन इस बिन्दू पर नीतीश कुमार को विश्वास में लेना लालू के लिए आसान नहीं है. इसलिए भी लालू दबाव में हैं और नीतीश कुमार का कोई भी निर्णय उनका खेल बिगाड़ सकता है.
विपक्षी महागठबंधन I.N.D.I. गठबंधन आज वैसे मजबूत राजनीतिक इच्छा शक्ति के रु-ब-रु है जिसे उसने खुद पूर्व में नहीं देखा था. इससे सबों की नसें ढीली पड़ गई हैं. राजनीतिक वजूद संकट मे है. इसलिए सब अपने-अपने हितों को पूरा करने के लिए मजबूती से डटे हैं और टकराहट बढ़ती जा रही है. इससे लालू यादव कुछ ज्यादा परेशान हैं. उनका पूरा परिवार कानूनी जद में है.
यह छिपी हुई बात नहीं है कि बिहार में सीट शेयरिंग के मसले पर लालू-नीतीश की टकराहट बढे़गी. लालू राजद विधायकों की संख्या के आधार पर सीट बंटवारे के पक्षधर हैं और नीतीश कुमार लोकसभा में अपने सांसद संख्या बल के आधार पर सीटों का बंटवारा चाहते हैं. लालू यादव यह भी मानते हैं कि जदयू के अलावा बिहार महागठबंधन में जितने भी दल हैं, सब उनके कारण ही हैं और इसलिए उन सभी दलों के साथ सीट बंटवारे का दबाव उनपर ही है. लेकिन उनकी यह ताकत नीतीश कुमार के आगे फेल हो गई है. इसलिए इसमें कोई हैरत की बात नहीं है कि बिहार महागठबंधन में कोई बडा़ “खेला” हो जाए. ऐसा होने पर I.N.D.I. गठबंधन की तासीर ही बदल जायेगी.