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मौजूदा राजनीतिक माहौल को बदलना मामूली साहसिक कार्य नहीं

पटना (TBN – अनुभव सिन्हा)| बिहार के अतीत और वर्तमान के बीच सामंजस्य स्थापित करने का सिर्फ एक उपाय है और वह उपाय है व्यवस्था में बदलाव लाना. प्रशांत किशोर की जन सुराज पदयात्रा (Prashant Kishor’s Jan Suraaj Padyatra) इसी उद्देश्य से प्रेरित है.

तीन जिलों की पदयात्रा पूरी करने के बाद 15 जनवरी को प्रशांत किशोर गोपालगंज (Sidhwalia Block of Gopalganj district) जिले के सिधवलिया प्रखण्ड के काशी टेंगराही पंचायत पहुंचे. पदयात्रा का यह 106वां दिन था.

अपने अभियान में लगे प्रशांत किशोर की इस पदयात्रा का जिक्र बिहार मे लोगों की ज़ुबान पर है, ऐसा नहीं कहा जा सकता. लेकिन, 2 अक्टूबर 2022 से पश्चिमी चम्पारण के भीतिहरवा से शुरु हुई उनकी पदयात्रा अनवरत जारी है. न उनकी उर्जा में कोई कमी आई न उनको सुनने वालों को उनकी बातें समझने में दिक्कत हो रही है.

उनके अलावा बिहार में ही दो पदयात्राएं और हो रही हैं. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार समाधान यात्रा (Nitish Kumar’s Samadhan Yatra) निकाले हुए हैं तो भारत जोडो़ यात्रा का बिहार चैप्टर कांग्रेस पार्टी (Bharat Jodo Yatra of Bihar Chapter of Congress Party) ने निकाला हुआ है. इन दोनों यात्राओं की भी कितनी चर्चा है, कायदे से यह भी नहीं कहा जा सकता.

लेकिन बिहार में हो रही तीन पदयात्राओं की तासीर एक नहीं है. कांग्रेस अपनी खोई जमीन तलाश रही है. नीतीश कुमार महागठबंधन सरकार के द्वन्द्व और अपने सुशासन की छवि के धुंधले होते जाने और सीएम की कुर्सी बचाए रखने की चुनौतियों से जूझ रहे हैं. और इन दोनों से बिल्कुल अलग प्रशांत किशोर व्यवस्था में बदलाव लाने के लिए लोगों को झकझोर रहे हैं.

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यह आफिशियल है कि बिहार पिछड़ा हुआ राज्य है. गरीबी और पिछड़ापन दूर करने के 1990 से लालू और नीतीश की कोशिशों का यह परिणाम है. आवाम दोनों की राजनीति को समझने के बजाय उनकी भड़काउ बातों से प्रेरित होती रही. इनके अधिकार बोध को लालू-नीतीश ने कुछ इस तरह से हैण्डल किया कि गरीबी पूरे राज्य में पसरती रही और लोगों के अंदर गरीबी से बाहर निकलने का एहसास तक खत्म कर दिया गया.

राज्य में आर्थिक गतिविधियों की शून्यता को भावात्मक रुप भरने के क्रम में जातिवाद और तुष्टिकरण की ऐसी साजिश रची गई जिससे लालू गरीबों के मसीहा और नीतीश सुशासन बाबू बन गए. ग्रामीण आबादी की स्थिति बद से बदतर होती रही लेकिन इस माहौल को बदलने का जिम्मा लेने के लिए कोई आगे नहीं आया.

सूबे की सियासत में इसी बिन्दु पर प्रशांत किशोर का आगमन हुआ. गरीबी, फटेहाली, राजनीतिक प्रपंच और सत्ता में बने रहने के समीकरणों की परत-दर-परत खोल रहे प्रशांत किशोर की पदयात्रा का जिक्र हो भी तो कैसे ? जिस आवाम को प्रशांत किशोर झकझोर रहे हैं, उसको लेकर सूबे के सारे राजनीतिक दल किसी घोर विश्वास में डूबे हैं कि उनके समीकरण की काट प्रशांत किशोर नहीं निकाल पायेंगे. सत्ता में भागीदारी की जो घूंट लालू-नीतीश ने लोगों को पिला रखी है, भाजपा, कांग्रेस सहित अन्य छोटे-छोटे दल जिस तरह से अपनी राजनीतिक रोटी सेंकने की व्यवस्था में रात-दिन लगे रहते हैं, उनके समक्ष प्रशांत किशोर के प्रयास नाकाफी लगे, इसलिए उसे नजरअंदाज किया जा रहा है.

पर सियासतदानों की परेशानी बढ़ती जा रही है. बड़ी वजह यह है कि प्रशांत किशोर अपने उद्देश्य में पूरे समर्पण के साथ लगे हुए हैं. सत्ता में बने लालू-नीतीश के सामने सत्ता को बनाए रखने की चुनौती है और यही उनकी परेशानी का सबब भी है. उपरी तौर पर सबकुछ शांत दिखाई दे रहा माहौल जिस अण्डरकरेंट से गुजर रहा है, उसके सतह पर आने में लगने वाला समय उसको और पुख्ता ही करेगा.