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लालू के बयान से झलकता है सीबीआई का खौफ !

पटना (TBN – वरिष्ठ पत्रकार अनुभव सिन्हा की खास रिपोर्ट)| गोपालगंज में लालू यादव ने तेजस्वी यादव का सीएम बनना फिलहाल गैर-जरूरी बताया है. “मोदी को भगाना और देश बचाना, आज के भारत की पहली जरूरत है. इसी लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए इंडिया में शामिल सभी दल लगे हुए हैं” – ऐसा लालू ने मीडिया से कहा. यह वही लालू हैं जिन्होनें हाल ही में सुप्रीम कोर्ट में गुहार लगाई कि बीमार आदमी को जेल न भेजा जाय. सीबीआई ने उनकी जमानत रद्द करने की अर्जी लगाई है और मामला विचाराधीन है.

जबकि, 2022 के 9 अगस्त को नीतीश कुमार के साथ सरकार बनाने के बाद से ही राजद ने एक अभियान जैसा चला रखा था और यह संदेश दिए जाने की कोशिश रहती थी कि नीतीश कुमार को धकिया कर कुर्सी से हटाने और तेजस्वी की सीएम पद पर ताजपोशी कभी भी हो सकती है. हालांकि ऐसा तो आजतक नहीं हो पाया लेकिन नीतीश कुमार के कद को छोटा करने और उनका मनोबल कमजोर करने की कोशिश को जदयू कार्यकर्ता अभी भी भूले नहीं हैं.

राजनीतिक तिलस्म दरकने का खतरा

इधर, लालू यादव पर बहुत बडा़ नेता होने का दबाव बढ़ गया है. इस दबाव का ताजा कारण सीबीआई की अर्जी तो है ही, पूरे परिवार के कानून की जद में होने का डर भी है. कानूनी शिकंजे में फंसे इस परिवार के मुखिया लालू यादव का डर सिर्फ कानूनी ही नहीं है, अपने जिस राजनीतिक वजूद को वह तिलस्मी मानते रहे हैं, उसके दरकने का खतरा भी उतना ही है और इससे परेशान हैं.

नीतीश कुमार की तो सांसे अटकी

पिछले साल नीतीश कुमार का साथ मिलने की वजह से फिर से पांच साल बाद सत्ता का स्वाद चख रहे लालू यादव के बारे में यह सर्वविदित है कि अपने राजनीतिक हित को पूरा करने में उनका कोई सानी नहीं है. पर इस बार भी उल्टा ही होते जा रहा है. मेल पिछले साल हो गया, एक साल के बाद भी ताल अभी तक नहीं बैठ पाया. समस्या यह हो गई है कि मोदी को देश से भगाएं कि बिहार में खुद को बचाए रखने में कामयाब रहें. यही रोना नीतीश कुमार का भी है. नीतीश कुमार की तो सांसे अटकी हुई हैं. जदयू के बिखर जाने के भय से वह आक्रांत हैं. दोनो को इस समस्या का फिलहाल कोई समाधान मिलता नजर नहीं आ रहा है.

नीतीश कुमार की सीटें होगी कम

लालू की पार्टी 22+ लोकसभा सीटों पर चुनाव लडे़गी तो नीतीश कुमार की सीटें कम होगी. इसका असर जदयू और सांसदों पर पड़ना तय है. बिहार में नीतीश कुमार के साथ सरकार चलाने के बावजूद अपनी दिल्ली की जरूरतों के लिए लालू सोनिया गांधी पर ज्यादा निर्भर हैं. इसलिए भी लोकसभा चुनाव में लालू और ताकतवर बनकर सामने आना चाहते हैं. 2019 में जीरो पर आउट होने वाले लालू इस बार एंटी मोदी कैम्पेन में कोई भी कसर छोड़ना नहीं चाहते. यह तभी होगा जब नीतीश बाबू अपनी कुर्बानी दें. लेकिन नीतीश कुमार के लिए यह आत्मघाती है. यह समस्या है जिसे दोनो कह नहीं सकते और गतिरोध बना हुआ है.

राजद के मुखिया तो रहेंगे आजीवन

2013 में चारा घोटाले के मामलों में दोषी पाए जाने के बाद लालू को सजा हुई और चुनाव लड़ना तो दूर, मतदान का अधिकार तक खत्म हो गया. पालिटिकल कैरियर तो खत्म हो गया, पर संविधान में राजनीतिक दल के अस्पष्ट प्रावधान के कारण राजद के मुखिया तो आजीवन रहेंगे. चुनाव आयोग भी इसी वजह से कुछ नहीं कर पाता. फिर भी, अपने उत्तराधिकारी को लेकर लालू की फिक्र सामने आती रही है. इसलिए सीबीआई द्वारा जमानत खारिज करने की अर्जी के बाद लालू ने सुप्रीम कोर्ट से गुहार लगाई है.

जबकि, सुप्रीम कोर्ट को यह पता है कि “जंगल राज” का मतलब देश के किस राज्य से है और किस नेता के कारण बिहार को उतने दंश झेलने पडे़ जब लालू राज कायम था. इसलिए कानून से खौफजदा लालू का बयान उनके समर्थक भले सच मानें, भ्रष्टाचारियों का मोदी विरोध कितना रंग दिखा पायेगा, यह देखना भी उतना ही दिलचस्प होगा.