लोकसभा चुनावों में बसपा बिगाड़ सकती है महागठबंधन का खेल
पटना (TBN – वरिष्ठ पत्रकार अनुभव सिन्हा की रिपोर्ट)| लोकसभा चुनावों को देखते हुए बहुजन समाज पार्टी (Bahujan Samaj Party) ने भी बिहार में अपनी सक्रियता बढा़ई है. विधानसभा चुनावों में पार्टी ने सीटें भी जीती हैं. पर, बसपा अपने संगठन के लिए बेहतर तौर पर जानी जाती है. उत्तर-पश्चिमी बिहार के इलाकों में पार्टी का सक्रिय संगठन है. पर, लोकसभा चुनावों के मद्देनजर पार्टी ने 25 अगस्त को “पिछडा़-अति पिछडा़ अधिकार सम्मेलन” का आयोजन कर अपने कार्यकर्ताओं को पूरी तरह से तैयार रहने का आह्वान किया.
गांधी मैदान के निकट बापू सभागार (Bapu Auditorium, Patna) में आयोजित इस सम्मेलन में बसपा के मुख्य केन्द्रीय प्रभारी आकाश आनंद, राज्य सभा सांसद राम जी गौतम, बिहार राष्ट्रीय प्रदेश प्रभारी लाल जी मेघांकर, बिहार प्रभारी अनिल कुमार एवं सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता सुरेश राव की मौजूदगी पार्टी की चुनाव तैयारियों का इशारा करती है.
बसपा की नजर 1990 से अभीतक लालू-नीतीश राज पर है. लालू-नीतीश दोनो ओबीसी समाज से आते हैं और फिलहाल ईबीसी पर नजर गडा़ए हुए है. जबकि देश के सबसे बडे़ राज्य यूपी में बसपा ने ईसीबी की राजनीति का परचम लहराया है. हालांकि, बिहार की स्थितियां यूपी से भिन्न हैं.
पिछडा़-अति पिछडा़ अधिकार सम्मेलन में बसपा ने बिहार के ओबीसी-ईबीसी समाज को मुख्य रूप से साधने की रणनीति अपनाई है. आकाश आनंद ने जोरदार हमला करते हुए कहा कि बिहार की जदयू-राजद वाली महागठबंधन सरकार ओबीसी-बहुजन समेत सर्व समाज विरोधी है. और, यही वजह है कि बिहार में ओबीसी-ईबीसी समाज पिछले 33 साल से हाशिए पर ही है. जोर देकर उन्होने कहा कि इस सूरत को बदलना है.
उन्होने कहा कि बिहार की जनता ने 33 सालों में दोनों तरह की सरकारें देखी, लेकिन उनके हाथ आज भी मायूसी है. 17 % दलित और 36 % अतिपिछड़ा लोग बिहार में रहते हैं. सम्मेलन को लखल जी मेघांकर, अनिल कुमार सहित अन्यों ने भी सम्बोधित किया.
वैसे बसपा की एक कोशिश बिहार से भरपाई की भी हो सकती है. इसकी बडी़ वजह बिहार महागठबंधन में जारी आपसी खींचतान है. कांग्रेस, जदयू और राजद के अपने-अपने हित हैं जो सीटों के बंटवारे के समय स्पष्ट होंगे.
यहां ध्यान रखने की बात यह है कि आपस में लड़ते हुए भी महागठबधंन भाजपा के खिलाफ एकजुटता का स्वांग करता है. बसपा बिहार में एनडीए या महागठबंधन दोनो में से किसी का हिस्सा नहीं है. बसपा प्रमुख मायावती यह मानती हैं कि गठबधंन से उन्हें लाभ नहीं होता. मुमकिन है बसपा अकेले चुनाव में उतरे. वैसी स्थिति में यह जितनी सीटों पर लडे़गी, चुनाव को त्रिकोणीय बना सकती है जिसका नुकसान महागठबंधन को उठाना पड़ सकता है. क्योंकि महागठबंधन और बसपा दोनो की नजर ओबीसी-ईबीसी समाज से अधिक से अधिक वोट लेने की रहेगी.