पानी में लकीर खींचेंगे जनतांत्रिक विकास पार्टी के अनिल सिंह
पटना (TBN – वरिष्ठ पत्रकार अनुभव सिन्हा की रिपोर्ट)| जनतांत्रिक विकास पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अनिल कुमार ने अगड़ी जाति के आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग को आरक्षण दिए जाने का पुरजोर विरोध किया है.
अनिल कुमार अपनी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं. हालांकि राजधानी पटना के राजनीतिक क्षितिज पर अपनी पहचान के लिए संघर्षरत अनिल कुमार ने कभी इस बात की जानकारी नहीं दी कि बिहार के अलावा और कितने प्रदेशों में उनकी पार्टी सक्रिय है. फिर भी वह राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं.
वैसे चुनाव आयोग कार्यालय में उनकी पार्टी की पहचान जमानत जब्त होने वाली पार्टी के रूप में दर्ज है. 2020 के बिहार विधान सभा चुनावों में काफी हाथ-पैर मारने के बाद भी राजद और एनडीए से चुनावी तालमेल न हो पाने के बाद उन्होने अपने उम्मीदवार खड़े किए थे, लेकिन कोई भी अपनी जमानत बचा नहीं पाया.
मीडिया से बात करने के दौरान अनिल कुमार ने अगड़ी जाति के आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग को आरक्षण दिए जाने का तब विरोध किया जब केन्द्र सरकार के इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दिए जाने के बाद सर्वोच्च अदालत ने केन्द्र के इस निर्णय को सही ठहराया है.
दरअसल, बिहार का जो राजनीतिक समीकरण है और उसके आधार पर जो राजनीति होती है, उस पर भाजपा और कांग्रेस को छोड़ दें, तो राजद और जदयू का अस्तित्व इसी समीकरण पर टिका हुआ है. राजद का कोई काडर नहीं है, यह जातिवाद की राजनीति करता है. जदयू का संगठन बहुत कमजोर है और पिछड़ों की राजनीति करने के बाद भी अपने बूते यह चुनाव नहीं लड़ सकता. अनिल कुमार को यहां स्पेस नजर आता है और लगता है कि येन-केन-प्रकारेण उनकी भी मांग बढ़ जायेगी. जबकि पिछले विधानसभा चुनावों के बाद इनसे जुड़े अधिकांश लोगों ने पार्टी छोड़ दी है.
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पिछड़ी जाति से आने वाले अनिल कुमार को भाजपा के काडर की ताकत और हाशिए पर पहुंच चुकी कांग्रेस की राजनीतिक पकड़ का पूरा अंदाजा है. ई.डब्ल्यू.एस. का विरोध करके पिछड़ी और दलित समूहों से कुछ हिस्सा अपनी तरफ करने की फिराक में लगे अनिल सिंह ने सिर्फ पुरजोर विरोध करने की ही बात कही है, अपनी किसी रणनीति पर प्रकाश नहीं डाला है.
बिहार जैसे राज्य में जहां राजनीतिक समीकरण और सत्ता के केन्द्र में मौजूद राजद और जदयू के बीच में गठजोड़ के बावजूद ढेर सारे किन्तु-परन्तु हों, वहां अनिल कुमार की अपनी उपस्थिति दर्ज कराने और सुर्खियों बटोरने की कोशिश से ज्यादा कुछ नहीं है ई.डब्ल्यू.एस का विरोध !