आजादी के बाद 1967 तक 4 बार एक साथ हुए थे लोकसभा और विधानसभा चुनाव
पटना (TBN – The Bihar Now डेस्क)| देश में ‘वन नेशन-वन इलेक्शन’ (One Nation-One Election) को लेकर बहस काफी समय से चल रही है. इसी साल जनवरी में लॉ कमीशन (Law Commission) ने इसको लेकर राजनीतिक दलों से छह सवालों के जवाब मांगे थे. सरकार इसे लागू कराना चाहती है तो वहीं कई राजनीतिक दल इसके विरोध में हैं.
बता दें, 1947 में देश की आजादी के बाद 1952, 1957, 1962 और 1967 में लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ ही होते थे. इसके बाद 1968 और 1969 में कई विधानसभाएं समय से पहले ही भंग कर दी गई. उसके बाद 1970 में लोकसभा भी भंग कर दी गई. इससे एक साथ चुनाव की परंपरा टूट गई.
पीएम मोदी ने कहा था
‘वन नेशन-वन इलेक्शन’ मामले पर प्रधानमंत्री मोदी ने राज्यसभा में चर्चा के दौरान कहा था, “सीधे कह देना कि हम इसके पक्षधर नहीं हैं. आप इस पर चर्चा तो करिए भाई, आपके विचार होंगे. हम चीजों को स्थगित क्यों करते हैं. मैं मानता हूं जितने भी बड़े-बड़े नेता हैं, उन्होंने कहा है कि यार इस बीमारी से मुक्त होना चाहिए. पांच साल में एक बार चुनाव हों, महीना-दो महीना चुनाव का उत्सव चले. उसके बाद फिर काम में लग जाएं. ये बात सबने बताई है. सार्वजनिक रूप से स्टैंड लेने में दिक्कत होती होगी.”
उन्होंने कहा कि क्या यह समय की मांग नहीं है कि हमारे देश में कम से कम मतदाता सूची तो एक हो. आज देश का दुर्भाग्य है कि जितनी बार मतदान होता है, उतने ही मतदाता सूची आती है.
22वें लॉ कमीशन ने मांगी थी राय
22वें लॉ कमीशन (22nd Law Commission) ने सार्वजनिक नोटिस जारी कर राजनीतिक दलों, चुनाव आयोग और चुनाव प्रक्रिया से जुड़े सभी संगठनों से इसको लेकर उनकी राय मांगी थी. लॉ कमीशन ने पूछा था कि क्या एक साथ चुनाव कराना किसी भी तरह से लोकतंत्र, संविधान के मूल ढांचे या देश के संघीय ढांचे के साथ खिलवाड़ है? कमीशन ने भी पूछा था कि हंग असेंबली (hung assembly) या आम चुनाव में त्रिशंकु जनादेश (hung mandate) की स्थिति में जब किसी भी राजनीतिक दल के पास सरकार बनाने के लिए बहुमत न हो, चुनी गई संसद या विधानसभा के स्पीकर की ओर से प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री की नियुक्ति की जा सकती है?
दरअसल, संविधान के अनुच्छेद 85 (Article 85 of the Constitution) में संसद का सत्र बुलाने का प्रावधान है. इसके तहत सरकार को संसद के सत्र बुलाने का अधिकार है. संसदीय मामलों की कैबिनेट समिति निर्णय लेती है जिसे राष्ट्रपति द्वारा औपचारिक रूप दिया जाता है, जिसके जरिए सांसदों को एक सत्र में बुलाया जाता है.
बगैर संविधान संशोधन के मुमकिन नहीं
बताते चलें, अगस्त 2018 में ‘एक देश-एक चुनाव’ पर लॉ कमीशन की रिपोर्ट आई थी. इस रिपोर्ट में सुझाव दिया गया था कि देश में दो फेज में चुनाव कराए जा सकते हैं. पहले फेज में लोकसभा के साथ ही कुछ राज्यों के विधानसभा चुनाव और दूसरे फेज में बाकी राज्यों के विधानसभा चुनाव. लेकिन इसके लिए कुछ विधानसभाओं का कार्यकाल बढ़ाना होगा तो किसी को समय से पहले भंग करना होगा. और ये सब बगैर संविधान संशोधन के मुमकिन नहीं है.
(इनपुट-न्यूज)