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आजादी के बाद यदि कांग्रेस ने ऐसा जागरण अभियान चलाया होता तब आज स्थिति दूसरी होती !

पटना (TBN – अनुभव सिन्हा)| जरा गौर कीजिये ! बिहार में महागठबंधन की सरकार भाजपा के लिए और भाजपा महागठबंधन की सरकार के लिए लोगों से क्या कहती है. सूबे में भाजपा डबल इंजन की सरकार चाहती है और महागठबंधन में शामिल दल सिर्फ बिहार में ही नहीं, देश में भी भाजपा को गरीब विरोधी बताकर सत्ता से दूर रखना चाहते हैं.

हर सूचकांक पर बिहार पिछड़ा है, यह तो कहा जाता है. पर महागठबंधन में शामिल बड़े दल की हैसियत रखने वाले राजद और जदयू पिछड़ों में शामिल लोगों की संख्या नहीं बताते. दोनों दल जातीय गणना और बिहार को विशेष दर्जा देने की बात करते हैं. ये दोनों बातें पूरी हो जाएं तो नीतीश कुमार बिहार को टाप पर पहुंचा देंगे!!

अब जरा बिहार की राजनीतिक स्थिति के मजेदार पहलू पर गौर कीजिये. देश की जब बात होगी तब कांग्रेस की बात पहले होगी. लगभग छह दशकों तक हुकूमत करने वाली कांग्रेस पार्टी आज संसद में विपक्ष की हैसियत भी गंवा चुकी है बावजूद इसके कि विपक्ष में सबसे बड़ा दल वही है. उसकी यह हालत उसके ऐजेंडे के कारण हुई है. पर, उसकी राह पर चलने वाले शेष विपक्षी दल इस तथ्य को ही नजरअंदाज भी करते हैं. हालांकि इसी में उनका भी हश्र छिपा हुआ है. यह स्थिति बिहार में पहले नजर आयेगी, इसे मानने के कारण भी मौजूद हैं.

वजह बड़ी है. बिहार गरीबी के कारण पिछड़ा है. यहां की गरीबी ग्रामीण इलाकों में पसरी हुई है. ग्रमीण इलाकों के मतदाता लगातार जन प्रतिनिधियों को चुनते रहे हैं. विभिन्न दलों का शातिराना रवैया देखिए कि इतने दिनों में व्यवस्था इतनी पुख्ता कर ली गई है कि उनके चुनाव परिणाम में न कोई बदलाव आता है न गरीबी दूर होती है. यह बिहार में राजद, जदयू, भाजपा, कांग्रेस के बीच मुख्य रूप से वोटों के बंटवारे की वजह से है.

दिलचस्पी इस रुप में बढ़ती जा रही है कि गरीबों को उनकी गरीबी की वजह बताने वाला ” कोई ” सक्रिय हो गया है. गरीबों के कानों तक जो बातें अब पहुंच रही हैं, वैसा उन्होंने पहले कभी नहीं सुना.

उदाहरण के लिए, बिहार के मतदाताओं ने कभी किसी को यह कहते नहीं सुना कि वह मुख्यमंत्री नहीं बनना चाहता. मुख्यमंत्री बनना बहुत छोटी बात है. उसका सपना बहुत बड़ा है. वह बिहार के गौरवशाली अतीत की तरह ही उसका वर्तमान भी देखना चाहता है. सबसे समुन्नत, सबसे विकसित और भव्य ! क्योंकि इसकी जड़ें उतनी ही गहरी हैं.

ऐसी भावपूर्ण बातें जिनका एहसास मतदाताओं के मानस पटल से उड़ा दिया गया हो, उन्हें स्पन्दित कर रही हैं. भोगा हुआ कष्ट उनकी आंखों में चमक पैदा कर रहा है. लालू-नीतीश के 33 वर्षों का शासन उनके सामने है. एक ही अवस्था में एक पीढ़ी जवान से बूढ़ी हो गई और दूसरी पीढ़ी बचपन से जवानी तक पहुंच चुकी है. लेकिन गुरबत है कि उसके बारे में सोचना ही छोड़ दिया था. अब ” कोई ” बता रहा है.

यह प्रयास प्रशांत किशोर का है. पिछले साल पश्चिमी चम्पारण के भितिहरवा से बिहार की सड़ी-गली व्यवस्था को पूरी तरह से बदल देने के लिए 2 अक्टूबर से अपनी जन सुराज पदयात्रा के जरिए वह ग्रामीण आबादी से बिना ब्रेक मिल रहे हैं. लोगों की और स्थानीय समस्याओं का पूरा लेखा-जोखा लगातार संकलित भी होता जा रहा है. यह वह अंतर है जो एक टेक्नोक्रेट और परम्परावादी राजनीतिक नेतृत्व के बीच होता है. जितना संकलन प्रशांत किशोर के पास अभीतक हो चुका है, यह कहना मुश्किल है कि पश्चिमी चम्पारण, शिवहर और पूर्वी चम्पारण से संकलित तथ्यों से उपजे सवालों का जवाब बिहार सरकार के पास होगा !

अंदाजा लगाया जा सकता है कि जब प्रशांत किशोर की पदयात्रा समाप्त होगी तब वह कैसे-कैसे तीखे सवालों से लैस होंगे और व्यवस्था में बदलाव लाने के अपने उद्देश्य को पूरा करने की ख़ातिर राजनीतिक व्यवस्था को कैसे बदलते हैं. यह परिवर्तनकारी घटना कितनी लोमहर्षक होगी, यह देखना भी स्वंय में एक अनुभव ही होगा.