Patnaमनु कहिन

मनु कहिन – “छात्र से प्राचार्य”

उस पल को सोचकर ही मन आह्लादित हो उठता है. कितना रोमांचित कर जाता है वह पल, आप उसकी सिर्फ़ और सिर्फ़ कल्पना ही कर सकते हैं. पर, ज़रा उनसे पूछिए जिन्होंने इस पल को जीया है.

मैं कल्पना कर सकता हूं. कितना भावुक पल रहा होगा. आपको बहुत मशक्कत करनी पड़ी होगी अपनी भावनाओं को काबू करने में, संतुलन बैठाने में.

गुरुवार 31 मार्च 2022, मैं साक्षी बना कुछ इसी तरह के पलों का. अवसर था, शहीद राजेंद्र प्रसाद सिंह राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय गर्दनीबाग, पटना (Shaheed Rajendra Prasad Singh Government Higher Secondary School, Gardanibagh, Patna) जो पहले पटना हाई स्कूल (Patna High School) के नाम से जाना जाता था, उस स्कूल के प्राचार्य श्री रवि रंजन जी के स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति के अवसर पर विदाई समारोह का और उनके द्वारा रचित पुस्तक ‘छात्र से प्राचार्य’ के विमोचन का.

श्री रवि रंजन जी इसी पटना हाई स्कूल के छात्र रहें हैं और यहीं से वो आज प्राचार्य के पद पर रहते हुए स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले रहे थे.

जिस संस्थान को आपने अपनी जिंदगी का अधिकांश हिस्सा दिया हो वहां से अलग होना एक भावुक पल तो होता ही है. पर, जब आपने नौकरी की है तो सेवानिवृत्ति की तिथि तो नियुक्ति के दिन के साथ ही अंकित हो जाती है. पर यहां मामला कुछ और था. सर ने स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ली थी इसलिए यह दिन कुछ हद तक उनके मुताबिक ही बना था. सेवानिवृत्ति का पल वैसे ही काफी भावुक होता है. आप अपनी जिंदगी की दूसरी पारी शुरू करने जा रहे होते हैं. एक दूसरी ही भूमिका में अब आप नजर आने वाले हैं.

अब तक आपने चरित्र अभिनेता का रोल अदा किया है अब आप मुख्य पात्र के रूप में नजर आएंगे. हम सब की शुभकामनाएं उनके साथ है. वह जहां रहें स्वस्थ रहें, आनंदित रहे, सदा मुस्कुराते रहें. समाज को उन्होंने जो आज तक दिया है उस दिशा में वह बढ़-चढ़कर प्रयास करें.अब समय भी उनके साथ है. माहौल भी अनुकूल है.

अब हम आते हैं आज के मुख्य कार्यक्रम जो उनके सेवानिवृत्ति के साथ ही है, उनकी पुस्तक ‘छात्र से प्राचार्य’ के विमोचन का.

मैं खुद को गौरवान्वित महसूस कर रहा हूं कि मुझे आज उसी स्कूल में मंच प्रदान किया गया विशिष्ट अतिथि के रूप में बोलने के लिए जहां का मैं खुद विद्यार्थी रहा हूं और इंटर तक की पढ़ाई मैंने वहां से पूरी की है.

रवि रंजन सर की पुस्तक पहली नज़र में आपको उनकी आत्मकथा लगेगी. पर, शायद नहीं जब आप पुस्तक को पढ़ेंगे उसे अपने हाथों में लेंगे और तब जब उसके पन्नों को आप पलटेंगे तब आप महसूस करेंगे यह पुस्तक उन की आत्मकथा तो ख़ैर है ही. इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है. पर, यह पुस्तक हमें पटना हाई स्कूल के गौरवशाली अतीत को भी बताती है.

हमें कुछ वैसे अनछुए पहलुओं की भी जानकारी देती है जिससे हम आजतक अनभिज्ञ रहे. यह हमें हमारे गौरवशाली अतीत के साथ-साथ हमें वर्तमान में भी ले जाती है. हमें बताती है कि हम कहां थे और आज हम कहां पर हैं. एक समय था जब पटना के कलेक्टर छुट्टी पर जाते थे तो कलेक्टर की कुर्सी पर पटना हाई स्कूल के प्राचार्य ही बैठा करते थे. प्राचार्य को रिवाल्वर मिला हुआ था. आने जाने को बग्घी थी. गौरवशाली अतीत की बात करें तो हमें ‘अंग्रेज भारत छोड़ो’ के नारे के साथ जब 1942 में अगस्त क्रांति की शुरूआत हुई थी तो 11 अगस्त 1942 के दिन को नहीं भूलना चाहिए जब पटना में सेक्रेटेरिएट पर तिरंगा फहराने के दौरान अपनी छाती पर फिरंगियों की बंदूक से निकलने वाली गोलियां झेलते हुए जिन 7 छात्र नौजवानों ने शहादत दी उसमें पटना हाई स्कूल के दसवीं कक्षा के छात्र राजेंद्र प्रसाद सिंह जी भी थे जिनके हाथों से अभी शादी के पीले रंग भी नहीं उतरे थे. आज की तारीख में पटना हाई स्कूल अपने उसी अमर शहीद छात्र के नाम से जाना जाता है.

जब इस घटना में पटना हाई स्कूल के छात्र शहीद राजेंद्र प्रसाद सिंह जी भी थे तो लाज़मी था कि यहां के प्राचार्य को दंड दिया जाए तो दंड स्वरूप उस वक्त के प्राचार्य श्री सिद्धनाथ मिश्रा जी का यहां से तबादला कर उन्हें कैमूर भेज दिया गया.
बहुत सारी बातें हैं इस पुस्तक में कहने और सुनने को.

काठ (लकड़ी) से बनी हुई घुमावदार कुर्सी जिस पर उस वक्त के प्राचार्य बैठा करते थे आज भी इस स्कूल में मौजूद है. पेपर स्टैंड जिस पर अखबारें रखी जाती थी. आज़ भी रखी जाती हैं.तिजोरी जिसकी दो चाबियां थी आज भी स्कूल में देखने को मिलेगी. बहुत सारी बातें हैं. आप जब इस पुस्तक को पढ़ेंगे तब आपको अपने इस स्कूल के गौरवशाली अतीत के बारे में जानने का मौका मिलेगा.आप महसूस करेंगे और मुझे पूरा यकीन है कि आप उन भावुक पलों को याद कर रोमांचित हो जाएंगे कि आप इतनी बड़ी विरासत के हिस्सा रहे हैं. इस पुस्तक के लेखक श्री रवि रंजन जी को पुनः कोटिश: धन्यवाद और शुभकामनाएं.

मनीश वर्मा ‘मनु’