वकील ने की पटना हाईकोर्ट बिल्डिंग से कूदने की कोशिश; कानूनी तनाव उजागर
पटना (TBN – The Bihar Now डेस्क)| शुक्रवार को पटना उच्च न्यायालय (Patna High Court) में एक नाटकीय घटनाक्रम के बीच एक वकील ने कोर्ट की बिल्डिंग से कूदकर आत्महत्या करने का प्रयास किया. यह घटना तब हुई जब अदालत ने भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 498-ए (Section 498A of IPC), वैवाहिक क्रूरता और उत्पीड़न के तहत दायर मामले को रद्द करने के उनके आवेदन को खारिज कर दिया.
जानकारी के अनुसार, मुकेश कुमार सिंह नामक वकील की पत्नी ने उनके खिलाफ 498ए का मामला दर्ज कराया था. राहत पाने के लिए वकील ने मामला रद्द करने की अर्जी दायर की थी, जिसे अदालत ने शुक्रवार को खारिज कर दिया. पीठ ने वकील पर जुर्माना भी लगाया. केस खारिज होने के बाद वकील ने कोर्ट बिल्डिंग से कूदने की कोशिश की. हालाँकि, अदालत के अधिकारियों के त्वरित हस्तक्षेप ने किसी भी दुखद घटना को होने से रोक दिया.
वायरल वीडियो में साफ तौर से देखा जा सकता है कि मौके पर मौजूद वकील मुकेश कुमार सिंह को नीचे उतारने के साथ-साथ हाईकोर्ट की बदनामी होने की गुहार लगा रहे हैं. इसके बावजूद शिवपूजन अपनी जिद पर अड़े रहे. हालांकि समय रहते हाई कोर्ट परिसर में मौजूद सुरक्षाकर्मियों ने शिवपूजन को आत्मघाती कदम उठाने से पहले ही रोक लिया. तब जाकर हाईकोर्ट परिसर में मौजूद अन्य वकीलों ने राहत की सांस ली.
वहीं हाई कोर्ट में कार्यरत कर्मचारियों और हाईकोर्ट में अपने केस को लेकर पहुंचे प्रत्याशियों ने कहा कि देखते ही देखते वकील साहब ने इस तरह के आत्मघाती कदम उठा लिया. जिसके बाद पूरे हाईकोर्ट परिसर में अफरा तफरी मच गई. वहीं हाई कोर्ट में काम करने वाले अधिवक्ता के लिपिक निशांत ने बताया कि 148 के केस में सही जजमेंट न मिलने से गुस्से में आए हाईकोर्ट के वकील शिव पूजन ने इस तरह का आत्मघाती कदम उठाया हैं, जिसे समय रहते रोक लिया गया.
बताया जाता है कि अदालत ने फैसला सुनाया कि 5 लाख रुपये देकर वन टाइम सेटलमेंट कर लिया जाए. इस पर पीड़ित वकील गुस्से में आ गया. उसने पैसे देने से इनकार कर दिया कहा कि सुसाइड कर लेंगे. इसके बाद जाकर कूद गया. हालांकि अब इस पर अगली सुनवाई होगी. इसके लिए तारीख दी गई है. अगली सुनवाई 16 फरवरी को पटना हाईकोर्ट में होगी.
पटना हाईकोर्ट में घटी यह घटना न केवल कानूनी प्रणाली को नेविगेट करने वाले व्यक्तियों द्वारा अनुभव किए गए मानसिक और भावनात्मक तनाव को उजागर करता है, बल्कि गंभीर आरोपों के आरोपियों के लिए समर्थन तंत्र के बारे में भी सवाल उठाता है.
आज की यह घटना कानूनी मामलों के पीछे मानवीय तत्व की याद दिलाती है. यह कानूनी विवादों में शामिल व्यक्तियों के प्रति अधिक सहानुभूतिपूर्ण दृष्टिकोण की आवश्यकता को सामने लाता है, अपराधों के आरोपियों के लिए मानसिक स्वास्थ्य सहायता और परामर्श के महत्व पर जोर देता है, खासकर उन मामलों में जिनमें पारिवारिक और व्यक्तिगत संबंध शामिल हैं.
चूंकि कानूनी समुदाय और समाज बड़े पैमाने पर आज की इस घटना पर विचार कर रहा है, इसलिए व्यक्तियों के मानसिक स्वास्थ्य पर कानूनी कार्यवाही के व्यापक प्रभावों पर विचार करना अनिवार्य हो जाता है. यह कानूनी चुनौतियों में फंसे लोगों को सुरक्षा जाल प्रदान करने के लिए कानूनी पेशेवरों, अदालतों और सहायक सेवाओं के साथ मिलकर काम करने की आवश्यकता को रेखांकित करता है, यह सुनिश्चित करते हुए कि न्याय तो दिया जाता है, लेकिन यह मानव जीवन की कीमत पर नहीं आता है.