इस बार कैसा रहेगा बिहार में बाढ़ ?

पटना (संदीप फिरोजाबादी की रिपोर्ट) :- कोरोना के प्रकोप को झेल रहे बिहार को आने वाले दिनों में पिछले वर्ष की भांति बाढ़ की समस्याओं से भी गुजरना पड़ सकता है. ज्ञात हो पिछले साल बिहार में बाढ़ ने भयंकर तबाही मचाई थी. बाढ़ की वजह से बागमती के तटबंध 8 जगह टूट गए जिसके बाद सरकार ने आईआईटी के विशेषज्ञों की सलाह से इन तटबंधों को लेकर 122 नई योजनाएं बनाई थी
बिहार सरकार द्वारा अभी तक पिछले साल के टूटे तटबंधों की मजबूती नहीं की जा सकी है. जिसको देखते हुए बाढ़ का खतरा और भी ज्यादा बढ़ गया है. कोरोना संकट और लॉकडाउन के कारण इस साल बाढ़ से बचाव के लिए 122 योजनाएं अधर में ही लटक गई है. योजनाओं को 15 मई तक पूरा करना था लेकिन कोरोना संकट के कारण लॉकडाउन के चलते सभी योजनाओं का काम बंद हो चुका है. कोरोना के जो हालात इस वक़्त देश में चल रहे हैं उसको देख कर लगता है कि तटबंधों को लेकर बनाई गयी 122 नई योजनाओं का कार्य समय पर पूरा होने वाला नहीं है.
विभाग ने सभी संबंधित जिलों के जिलाधिकारियों को बाढ़ से जुड़ा काम नहीं रोकने का निर्देश दिया है. वहीँ डीएम ने निर्देश का पालन करते हुए योजनाओं का कार्य प्रशासनिक स्तर से नहीं रुकने दिया. लेकिन कोरोना के चलते लॉकडाउन की वजह से निर्माण एजेंसियों को मजदूर नहीं मिल पा रहे हैं. इसके साथ ही निर्माण सामग्री का भी अभाव होने की वजह से काम में रूकावट आ गयी है. इस मामले में बात करते हुए विभाग ने कहा है कि, ” अगर 1 मई तक भी काम शुरू हो जाए तो मानसून आने से पहले काम को पूरा कर लिया जाएगा. ऐसे में यदि वक्त रहते सभी योजनाओं पर काम नहीं किया गया तो इस बार भी बाढ़ का खतरा हमारे ऊपर मंडराते रहेगा”.
बता दें बिहार में बाढ़ आने का प्रमुख कारण बिहार की भौगोलिक परिस्थिति ही है क्योंकि बिहार में सात जिले ऐसे हैं जो नेपाल से सटे हैं. ये जिले हैं – पश्चिमी चंपारण, पूर्वी चंपारण, सीतामढ़ी, मधुबनी, सुपौल, अररिया और किशनगंज. नेपाल पहाड़ी इलाका है. जब पहाड़ों पर बारिश होती है, तो उसका पानी नदियों के ज़रिये नीचे आता है और नेपाल के मैदानी इलाकों में भर जाता है. नेपाल में कई ऐसी नदियां हैं जो नेपाल के पहाड़ी इलाकों से निकलकर मैदानी इलाकों में आती हैं. फिर वहां से और नीचे बिहार में दाखिल हो जाती हैं जो बाढ़ आने का प्रमुख कारण बनती हैं.