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लालू-राबड़ी सरकार की विदाई की नींव रखने वाले पूर्व DGP डीपी ओझा का निधन

पटना (The Bihar Now डेस्क)| लालू-राबड़ी सरकार (Lalu-Rabri government) की विदाई की नींव रखने वाले बिहार के पूर्व पुलिस महानिदेशक (former DGP) डीपी ओझा (D P Ojha, IPS) का शुक्रवार को पटना में निधन हो गया. 82 वर्षीय ओझा पिछले कुछ समय से बीमार चल रहे थे. भारतीय पुलिस सेवा से वीआरएस (VRS) लेने के बाद से वे पटना में ही रह रहे थे.

बता दें, अपने डीजीपी कार्यकाल के दौरान डीपी ओझा ने राष्ट्रीय जनता दल (Rashtriya Janata Dal) के अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव (Lalu Prasad Yadav) और सीवान के सांसद (Siwan MP) मोहम्मद शहाबुद्दीन (Mohammad Shahabuddin) की नाक में दम कर दिया था.

पद से हटा दिया गया

वैसे तो लालू यादव ने सवर्ण (भूमिहार) समुदाय की नाराजगी को कम करने के लिए मुख्यमंत्री राबड़ी देवी (Chief Minister Rabri Devi) की सरकार में डीपी ओझा को डीजीपी बनाया था, लेकिन डीजीपी के पद पर रहते हुए डीपी ओझा ने राबड़ी सरकार के बारे में खुलकर नकारात्मक बातें कीं. इस वजह से उन्हें रिटायरमेंट से दो महीने पहले ही दिसंबर 2003 में पद से हटा दिया गया. पद से हटने के बाद, डीपी ओझा ने वीआरएस ले लिया और कहा कि वह राबड़ी सरकार में एक मिनट भी काम नहीं कर सकते.

2003 के दिसंबर की यह कहानी बिहार में लालू यादव और राजद की सत्ता से विदाई की नींव रख चुकी थी. इसके सवा साल बाद लालू, राबड़ी और राजद सरकार की विदाई हो गई. हालांकि इसके पीछे कई राजनीतिक कारण भी थे, लेकिन विपक्ष ने लालू-राबड़ी की सरकार को ‘जंगलराज’ (Jungle Raj) कहे जाने के मुद्दे को उठाया था, जिसे डीपी ओझा के शहाबुद्दीन के खिलाफ चलाए गए अभियान ने एक मजबूत आधार प्रदान किया.

उस समय राज्य के राजनीतिक हलकों में चर्चा थी कि शहाबुद्दीन ने वारिस हयात खान को डीजीपी बनाने के लिए लालू यादव से पैरवी की थी. लेकिन लालू यादव ने सीनियरिटी के आधार पर डीपी ओझा को डीजीपी बना दिया. डीजीपी बनने के बाद, डीपी ओझा ने शहाबुद्दीन के खिलाफ इतनी कड़ी कार्रवाई की कि यह स्थिति लालू, राजद और राबड़ी सरकार के लिए मुश्किल बन गई.

सरकार के खिलाफ खुलकर बातें करने के कारण डीपी ओझा को रिटायरमेंट से दो महीने पहले हटा दिया गया. उनकी जगह डीजीपी बने वारिस हयात खान, जिनकी पैरवी पहले शहाबुद्दीन ने की थी. डीपी ओझा ने पद से हटने के बाद स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति (वीआरएस) ले ली और कहा कि इस सरकार में वह एक मिनट भी काम नहीं कर सकते.

शहाबुद्दीन पर कसा था शिकंजा

अपने डीजीपी के कार्यकाल के दौरान डीपी ओझा ने सरकार को एक गोपनीय रिपोर्ट सौंपी थी, जिसमें उन्होंने सीवान के बाहुबली सांसद मो शहाबुद्दीन से जुड़े कई माफिया और राजनेताओं का जिक्र किया था. इस रिपोर्ट में उत्तर प्रदेश के वाराणसी की कोलअसला सीट से तब भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के विधायक रहे अजय राय का नाम भी शामिल था. रिपोर्ट में भाजपा और नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) के साथ जुड़े विधायक और पूर्व विधायक रामा सिंह, सुनील पांडे और विक्रम कुंवर जैसे कई अपराधियों के नाम भी थे. इस रिपोर्ट में यह उल्लेख किया गया था कि अजय राय ने शहाबुद्दीन से एके 47 खरीदी है.

डीपी ओझा ने अपनी रिपोर्ट में शहाबुद्दीन पर आरोप लगाया था कि उसने कश्मीर में सक्रिय आतंकवादियों से कई एके 47 राइफलें खरीदीं और उनमें से कुछ एके 47 अजय राय को बेचीं. ओझा का यह दावा दिल्ली में गिरफ्तार किए गए एक अपराधी द्वारा पुलिस को दिए गए बयान के आधार पर किया गया था. हालांकि, अजय राय ने इन आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया था.

2014 के लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी ने वाराणसी से चुनाव लड़ने का निर्णय लिया. उस समय कांग्रेस पार्टी ने भाजपा के टिकट पर कई बार विधायक रह चुके अजय राय को नरेंद्र मोदी के खिलाफ चुनावी मैदान में उतारा. उस समय उत्तर प्रदेश भाजपा के प्रभारी अमित शाह ने अजय राय पर शहाबुद्दीन से एके 47 की खरीद की जांच कराने की मांग की थी. इस मामले में लोकसभा चुनाव के बाद पिछले दस वर्षों में क्या हुआ है, यह स्पष्ट नहीं है.

डीपी ओझा ने लड़ा लोस चुनाव

शहाबुद्दीन के खिलाफ कड़ी कार्रवाई को लेकर डीपी ओझा लालू यादव और राबड़ी देवी की सरकार के लिए एक बड़ी परेशानी बन गए. इस वजह से ओझा को राजद विरोधी वोटरों के बीच अच्छी खासी लोकप्रियता मिली. अपनी इस लोकप्रियता का लाभ उठाने के लिए, डीपी ओझा ने 2004 में भूमिहार बहुल बेगूसराय लोकसभा सीट से चुनाव लड़ने का फैसला किया. हालांकि, उन्हें 6000 से भी कम वोट मिले, जिसके कारण उनकी जमानत जब्त हो गई. इस चुनाव में जेडीयू के ललन सिंह ने कांग्रेस की कृष्णा शाही को लगभग 20 हजार वोटों के अंतर से हराया था.