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पराली जलाने वाले किसानों का बिहार सरकार ने किया सामाजिक बहिष्कार

पटना (TBN – अनुभव सिन्हा की रिपोर्ट)| एक साल होने वाले हैं किसान आन्दोलन के लेकिन अभी पराली जलाने को लेकर उनकी चर्चा है. मामला सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court of India) तक पहुंच गया है. लेकिन, बिहार की एनडीए सरकार (NDA Government of Bihar) ने एक कदम आगे बढ़कर पराली जलाने के मामले में किसानों को दण्डित करना शुरु कर दिया है.

अभी तक पटना जिले (Patna District) के विभिन्न इलाकों के 71 किसानों को दण्डित किया जा चुका है. इसकी जानकारी डीएम चन्द्रेश्वर सिंह (Chandreshwar Singh Patna DM) ने दी. उन्होंने बताया कि दंडित किये गए किसानों को सरकारी योजनाओं से वंचित कर दिया गया है. इसकी जानकारी गुप्त न रहे इसलिए उनके नाम प्रखण्ड कार्यालयों में सार्वजनिक होंगे. इस कदम से सबक न लेने वाले किसान भी दण्डित हो सकते हैं.

सरकार का कहना है कि एक टन पराली जलाने से 1440 किलो खतरनाक गैसें वातावरण में मिलती हैं जिससे वायु प्रदूषण बढ़ता है. किसानों को सरकार ने सलाह दी है कि पराली जलाने के बजाय उसका इस्तेमाल खाद बनाने मे करें. कृषि विभाग के कर्मियों को इस सिलसिले में किसानों को जागरुक करने के निर्देश भी दिए गए हैं.

कृषि प्रधान राज्य बिहार में सरकार को किसानों की संख्या की जानकारी नही है. हर प्रख्णड और पंचायतों में पैक्स की जानकारी सरकार को है लेकिन ये पैक्स किसानों का दोहन किस तरह करते हैं इससे सरकार का कोई वास्ता नही है.

राज्य के कृषि योग्य भूमि पर सिंचाई सुविधा उपलब्ध कराने में सरकार आज भी विफल ही है. इस बार अच्छे मानसून की वजह से खेतों में नमी है और सरकार निश्चिंत है. फसल कट जाने के बाद खेतों में ठूंठ बनकर छोड़ी गई पराली का निष्पादन किसानों के लिए कितना खर्चीला होता है, सरकार न तो इसका आंकलन करती है और न ही पराली को समस्या बनने से रोकने में किसी मदद की पेशकश ही करती है. किसान पराली निष्पादन पर होने वाले खर्च से बचने के लिए उसे जला देते हैं ताकि अगली फसल की बोवाई में पैसे खर्च कर सकें.

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सब्सिडी के नाम पर किसानों को आकर्षित करने वाली सरकारी योजनाओं पर बिचौलियों का अंकुश किसानों कमर तोड़ देने के लिए काफी है. हताश, निराश और कर्ज के जाल में फंस चुके किसानों में जिन 71 किसानों को दण्डित किया गया है, दरअसल उनका नाम सार्वजनिक किया जाना उनका “सामाजिक बहिष्कार” जैसा ही है. जबकि अपनी योजनाओं पर सरकार जितना ईतराती है, उसकी तुलना में योजनाओं का लाभ किसानों को मिलने के बजाय बिचौलियों की झोली भर देता है.

यदि सरकार पराली निस्तारण की व्यवस्था करती तब उसे किसानों का उत्साह नजर आता. पर किसानों के प्रति नीची नजर रखने वाली सरकार ने उन्हें दण्डित करना ज्यादा श्रेयस्कर समझा.