सादगी पसंद, दयालु एवं निर्मल स्वभाव के हमारे प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद
पटना (TBN – The Bihar Now विशेष)| डॉ राजेंद्र प्रसाद (Dr. Rajendra Prasad), जिनका जन्म 3 दिसंबर 1884 को बिहार के सिवान ज़िले के जीरादेई नामक गाँव (Ziradei village of Siwan) में हुआ था, वह एक प्रख्यात भारतीय राजनीतिक नेता और भारत के पहले राष्ट्रपति (first President of India) थे. आज 28 फरवरी को उनकी पुण्यतिथि के अवसर पर आइए जानते हैं उनके जीवन के बारे में, संक्षिप्त रूप में:
प्रारंभिक जीवन:
- राजेंद्र प्रसाद का जन्म 3 दिसंबर 1884 को बिहार के जीरादेई गांव में एक कायस्थ परिवार (Kayastha family) में हुआ था. उनके पिता का नाम महादेव सहाय (Mahadev Sahai) था, जो संस्कृत और फ़ारसी के विद्वान थे और जमींदारी की देखभाल करते थे. उनकी माता का नाम कमलेश्वरी देवी (Kamleshwari Devi) था, जो एक धर्मपरायण महिला थीं. डॉ राजेंद्र प्रसाद पांच भाई-बहनों में सबसे छोटे थे इसलिए पूरे परिवार में सबके प्यारे थे.
- उन्होंने कलकत्ता विश्वविद्यालय (University of Calcutta) और इलाहाबाद विश्वविद्यालय (University of Allahabad) जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों में अपनी शिक्षा प्राप्त की और शिक्षा के क्षेत्र में उत्कृष्ट प्रदर्शन किया.
- राजेन्द्र प्रसाद कलकत्ता विश्वविद्यालय में कानून की पढ़ाई करने गए जहां उन्होंने स्वर्ण पदक के साथ मास्टर ऑफ लॉ (Master of Law degree) की डिग्री हासिल की. उसके बाद उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से कानून में डॉक्टरेट (Doctorate in Law) की उपाधि पूरी की.
आजीविका:
- पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने कलकत्ता हाई कोर्ट में वकालत की प्रैक्टिस शुरू कर दी.
- 1916 में एक प्रमुख और सम्मानित वकील बनकर पटना उच्च न्यायालय (Patna High Court) आ गए.
- अपनी कानूनी विशेषज्ञता को और स्थापित करते हुए उन्होंने बिहार लॉ वीकली (Bihar Law Weekly) नामक पत्रिका की स्थापना की.
- फिर राजनीति में उनकी रुचि बढ़ी और वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में सक्रिय रूप से शामिल हो गये.
- राजेन्द्र प्रसाद ने असहयोग आंदोलन (Non-Cooperation Movement) और सविनय अवज्ञा आंदोलन (Civil Disobedience Movement) सहित विभिन्न सामाजिक और राजनीतिक आंदोलनों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
- फिर वह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एक प्रमुख व्यक्ति बन गए.
राजनीतिक जीवन:
- राजेन्द्र प्रसाद ने कई मौकों पर (1934, 1939, 1947) भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष (President of the Indian National Congress) के रूप में कार्य किया.
- असहयोग आंदोलन, नमक सत्याग्रह (Salt Satyagraha) और भारत छोड़ो आंदोलन (Quit India Movement) में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
- उनकी राष्ट्रवादी गतिविधियों के लिए कई मौकों पर ब्रिटिश अधिकारियों (British authorities) द्वारा उन्हें जेल भेजा गया.
- उन्हें भारत की संविधान सभा के अध्यक्ष के रूप में चुना गया जिसने भारत के संविधान (Constitution of India) का मसौदा तैयार किया.
- 1947 में जब भारत को आजादी मिली, तो डॉ राजेन्द्र प्रसाद को सर्वसम्मति से भारत गणराज्य के पहले राष्ट्रपति के रूप में चुना गया.
- उन्होंने 26 जनवरी 1950 से 13 मई 1962 तक दो कार्यकाल के लिए भारत के राष्ट्रपति के रूप में कार्य किया.
- राष्ट्रपति के रूप में डॉ राजेन्द्र प्रसाद ने एकता, अखंडता और सामाजिक न्याय पर ध्यान केंद्रित करते हुए एक गणतंत्र के रूप में भारत के प्रारंभिक वर्षों को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
बाद का जीवन:
- अपने राष्ट्रपति पद के बाद, डॉ राजेन्द्र प्रसाद ने सक्रिय राजनीति से संन्यास ले लिया लेकिन विभिन्न सामाजिक और शैक्षिक पहलों में शामिल होते रहे. स्वास्थ्य खराब होने के कारण 1962 में उन्होंने सार्वजनिक जीवन से संन्यास ले लिया.
- 28 फरवरी, 1963 को पटना में उनका निधन हो गया. उन्होंने अपने पीछे नेतृत्व, अखंडता और राष्ट्र के प्रति प्रतिबद्धता की विरासत छोड़ी.
- उन्हें 1962 में भारत के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार, भारत रत्न (Bharat Ratna) से सम्मानित किया गया.
- उन्हें उनकी 128वीं जयंती के अवसर पर 2012 में बिहार सरकार द्वारा देश रत्न (Desh Ratna), जिसका अर्थ है “राष्ट्र का गहना” (“Jewel of the Nation”) की उपाधि से भी सम्मानित किया गया था.
उल्लेखनीय कार्य:
डॉ. राजेंद्र प्रसाद एक प्रखर लेखक भी थे. उनके कुछ महत्वपूर्ण लेखन कार्य निम्नलिखित हैं:
आत्मकथा (Autobiography)
इंडिया डिवाइडेड (1946) [India Divided]
महात्मा गांधी और बिहार, कुछ यादें (1949) [Mahatma Gandhi and Bihar, Some Reminiscences]
बापू के कदमों में (1954) [Bapu Ke Kadmon Mein]
डॉ. राजेंद्र प्रसाद भारतीय इतिहास में सबसे प्रतिष्ठित शख्सियतों में से एक हैं, जिन्हें स्वतंत्रता संग्राम और राष्ट्र-निर्माण प्रयासों में उनके योगदान के लिए जाना जाता है. उन्हें एक विद्वान, वकील और सामाजिक सुधार के समर्थक के रूप में भी याद किया जाता है. एकता और राष्ट्रीय गौरव के प्रतीक, वह अपनी सरल और विनम्र जीवनशैली के लिए जाने जाते हैं. भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन और भारत के संविधान के निर्माण में उनके योगदान ने एक स्थायी विरासत छोड़ी.