गरीब बनाए रखने के लिए गरीबों की मदद करेंगे नीतीश !
पटना (TBN – वरिष्ठ पत्रकार अनुभव सिन्हा की रिपोर्ट)| दरिद्रता का दर्शन पेश करते हुए नीतीश कुमार (CM NItish Kumar) ने ‘पीएम यशस्वी योजना’ (PM Yasasvi Scholarship Scheme) बंद कर दी है. इस योजना के तहत राज्य में पिछड़ा एवं अतिपिछड़ा वर्ग के पहली से दसवीं तक के छात्र-छात्राओं को वजीफा मिला करता था, जिसमें केन्द्र की हिस्सेदारी महज 50 फीसद ही होती थी और उसपर भी वह समय पर नहीं मिलता था. नीतीश कुमार की सरकार ने केन्द्र से मिलने वाले पैसे लेने से इंकार करते हुए ‘पीएम यशस्वी योजना’ ही बंद कर खुद वह खर्च उठाने का फैसला किया है.
वैसे इस फैसले में वित्त वर्ष 2022-23 भी शामिल है जिसमें तीन महीने बाकी बचे हैं. साथ ही हास्टल में रहने वाले इस वर्ग के छात्र-छात्राओं को भी वजीफा मिलेगा. एक दिन पहले ही बिहार के वित्त मंत्री ने यह दावा किया था कि बिहार में हर चीज सकारात्मक है और कुछ मामलों में इसकी सकारात्मकता दुनिया में आगे है. वही वित्त मंत्री वर्ष 2023-24 के बजट में इस योजना को शामिल करेंगे जिससे 1.25 करोड़ छात्र-छात्राओं को मिलने वाला वजीफा राज्य सरकार से मिलने लगेगा और वह भी समय पर. वैसे यदि आप सूबे के अनुसूचित जाति के छात्र-छात्राओं के लिए बने हास्टल्स की जानकारी लें तो आप इस निष्कर्ष पर पहुंच सकते हैं कि उन्हें मिलने वाली सालाना सरकारी मदद जितनी होती है, उतनी राशि सरकार एक महीने से भी कम समय में अपने वाहनों पर फूंक देती है.
लेकिन यहां बात हो रही है पिछड़ा एवं अतिपिछड़ा वर्ग के पहली से दसवीं तक के छात्र-छात्राओं की और इसी दोनों वर्ग के हास्टल मे रहने वाले छात्र-छात्राओं की. राज्य सरकार पहले से चौथे वर्ग के छात्रों को 50 रुपये, पांचवी और छठी क्लास के छात्रों को 100 रुपये और सातवीं से दसवीं कक्षा के छात्रों को 150 रुपये महीना के हिसाब से वजीफा देती. इसके अलावा इन दोनों वर्गों के हास्टल में रहने वाले छात्र-छात्राओं को 250 रुपये का वजीफा मिला करेगा.
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लेकिन इन वजीफों की गुणवत्ता पर गौर करने की जरुरत है. गरीब बच्चों की पढाई पर 50 रुपये से लेकर 250 रुपये तक हर महीने खर्च करना सरकार काफी मानती है. लेकिन उसका ध्यान रुपयों से ज्यादा छात्रों की संख्या पर है जो 1.25 करोड़ है. इसलिए जब बताना होगा तब सरकार यह बतायेगी कि हास्टल में रहने वाले और पहली से दसवीं तक के पिछड़े और अतिपिछड़े वर्ग के छात्र-छात्राओं पर वह सालाना 82,500000000 रुपये खर्च कर रही है. तब इस बड़ी राशि का बड़ा चुनावी फायदा शायद उसे मिले या इस वर्ग के लोगों का वोट उसे मिल जाए. ध्यान देने वाली बात यह है कि पिछड़े और अतिपिछड़े वर्ग के लोगों के उन्नयन में शिक्षा की भूमिका महत्वपूर्ण तो है पर उनकी पहली जरुरत दो जून की रोटी ही है. शिक्षा के नाम पर इतनी बड़ी संख्या को कवर कर लेने से दोनों वर्गों की गरीबी दूर नहीं होने वाली है और न ही इन बच्चों को कोई गुणवत्तापूर्ण शिक्षा मिलने वाली है, तब भी इंजीनियर टर्न्ड सोशल साइंटिस्ट नीतीश कुमार की पिछड़ी राजनीति का रंग चोखा बना रहेगा.
बिहार को कुछ मायनो में दुनिया में बेहतर बताने वाले सूबे के शिक्षा मंत्री को शायद यह पता हो कि गरीबों की शिक्षा पर खर्च का मतलब क्या होता है. वैसे पूर्णता में शिक्षा के प्रति संवेदनशीलता वह होती है जहां पहली से पांचवीं तक के छात्र-छात्राओं की शिक्षा उच्च वेतन प्राप्त शिक्षकों द्वारा दिया जाता है.