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अपनी ही कीमत पर RJD को उभरने का मौका दिया Nitish Kumar ने !!!!

(संपादकीय – वरिष्ठ पत्रकार अनुभव सिन्हा की खास रिपोर्ट)| यह ठीक वैसा ही है जैसा अजगर को पालने का परिणाम होता है. अजगर की खुराकी का पूरा ख्याल रखा गया और कुछ दिनों बाद उसी अजगर ने खाना-पीना छोड़ दिया. पालनकर्ता ने चिकित्सक से सलाह ली तो पता चला कि उसे ही निगलने के लिए अजगर अपनी भूख बढ़ा रहा है. महागठबंधन सरकार के गठन के बाद जदयू (JDU) की स्थिति ऐसी ही है.

दरअसल शुरु से ही नीतीश कुमार (Nitish Kumar) प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी (PM Narendra Modi) के नाम पर अपनी गहरी असहमति जताते रहे हैं. दो मौकों पर उनका व्यवहार इसे प्रमाणित करता है. 2013 में 17 वर्षों बाद भाजपा से नाता तोड़ना उसी असहमति का परिणाम था. लेकिन इस प्रयोग का परिणाम 2014 के लोकसभा चुनावों में आया जिसमें वह बुरी तरह से असफल हुए.

इस असफलता के बाद उनके दूसरे प्रयोग ने बिहार को आज फिर लगभग उसी अवस्था में ला दिया जिससे 2005 में दो चुनावों के बाद निकाला गया था. नीतीश कुमार का दूसरा प्रयोग था 2015 के विधानसभा चुनावों में राजद के साथ गठबंधन, जब इस गठबंधन को बड़ी चुनावी कामयाबी मिली. यह कोई छोटी-मोटी कामयाबी नहीं थी.

1999 से 2014 तक लोकसभा चुनावों में लगातार हारने वाला राजद बिहार में लगभग हाशिए पर आ चुका था. जिसे 2010 के विधानसभा चुनावों में भी करारी मात मिली, उसे 2015 में दुबारा उभरने का मौका नीतीश कुमार ने दे दिया. पिछले पांच साल के बाद अब उन्होने फिर से दलीय स्तर पर बिल्कुल विपरीत स्थिति में एक बार फिर राजद के साथ सरकार बनाई है. लेकिन परसेप्शन बदला हुआ है.

पार्टी स्तर पर आरसीपी सिंह प्रकरण (RCP Singh Episode) और भाजपा से एक बार फिर सबंध विच्छेद के साथ-साथ राजद से गठबंधन की वजह से वह बैकफुट पर आ गए हैं. लेकिन इसका मजेदार पक्ष यह है कि इसे वह अपनी ताकत भी मान रहे हैं.

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नीतीश कुमार के गठबंधन में शामिल होने के फैसले से आने वाले दिनों में स्थिति कितनी गम्भीर हो सकती है इसका अंदाजा आगामी लोकसभा चुनाव की तैयारी में उनके लगने से लगाया जा सकता है. देश भर के विपक्ष को वह एक जुट करने निकलेंगे और उनकी अनुपस्थिति में तेजस्वी यादव बिहार पर शासन करेंगे. हेड आई विन, टेल यू लूज की स्थिति में राजद रहेगा और नीतीश कुमार की झोली में क्या आयेगा, यह स्पष्ट ही नहीं है.

सूबे में महागठबंधन की सरकार है, जंगल राज वर्जन-2 की आशंका की प्रतिध्वनि राज्य भर से सुनाई दे रही है जो सीएम के अनुकूल नहीं हैं. जदयू को राजद का पिछलग्गू बताया जा रहा है. जदयू की संगठनात्मक ताकत को राजद के बड़े जनाधार के सामने बौना बताते हुए लोगों की प्रतिक्रियायें अजगर की कहानी सुना रही हैं. सोशल मीडिया प्लेटफार्म्स पर नीतीश कुमार के प्रति आक्रोश की भरमार है.

नई सरकार में सबसे बड़ी पार्टी होने के साथ-साथ राजद उतना ही ऊर्जावान भी है. ऐसी उर्जा जदयू में दिखाई नहीं देती जिसका मनोवैज्ञानिक असर पार्टी पर भी दिख रहा है. हाल ही में लोगों से मिलने गोपालगंज पहुंचे आरसीपी सिंह को लोगों ने हाथो-हाथ लिया और उनके सीएम बनने के समर्थन में नारे तक लगाए.

(नोट: उपरोक्त लेखक के निजी विचार हैं)