नीतीश-लालू की राजनीति को कुंद कर रही जन सुराज पदयात्रा
सिकटा / पश्चिमी चम्पारण (TBN – अनुभव सिन्हा की रिपोर्ट)| शुक्रवार 14 अक्टूबर को जन सुराज पदयात्रा (Jan Suraaj Padyatra) को सौ किलोमीटर से आगे बढ़ाते हुए पश्चिमी चम्पारण के सिकटा प्रखण्ड (Sikta Sub Division) में प्रशांत किशोर (Prashant Kishore) ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Chief Minister Nitish Kumar) की कार्यप्रणाली पर करारा प्रहार किया. वह किसानों की एक बैठक को सम्बोधित कर रहे थे.
बिहार के किसानों को अपनी फसल की उचित कीमत नहीं मिलती. क्योंकि नीतीश कुमार ने अपने शासन काल में मण्डी की व्यवस्था समाप्त कर दी. इससे खुले बाजार में किसानों को अपनी फसल औने-पौने दाम पर बेचनी पड़ती है.
किसानों के बीच इसका जिक्र कर मानों प्रशांत किशोर ने उनको झकझोर कर रख दिया. एक झटके में नीतीश-लालू की जातिवादी, भ्रष्टाचार और गैर-जिम्मेदारी की राजनीति पर करारी चोट कर दी.
किसानों को उत्पादन का सही दाम न मिलना
बिहार के मेहनतकश किसानों के लिए अनाज उत्पादन का सही दाम न मिलना बड़ा संवेदनशील मसला है जो आने वाले वक्त में मुद्दा बन सकता है. भाजपा के नाम पर पंथ और जातिवाद के जरिए समाज को बांटकर अपनी राजनीति चमकाने वाले नीतीश – लालू के लिए आने वाला समय कितना चुनौतीपूर्ण हो सकता है, यह प्रशांत किशोर की जन सुराज पदयात्रा से सामने आ रहा है.
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सिमटा प्रखण्ड के सिरसिया बाजार में शुक्रवार को किशोर किसानों के बीच थे. किसानों ने जिस तरह से अपना हाल सुनाया, वह महागठबंधन सरकार का नेतृत्व कर रहे नीतीश कुमार के लिए संकट बन सकता है. निर्धारित सरकारी मूल्य की तुलना में तीन गुना ज्यादा दाम देकर उर्वरक खरीदना और खुले बाजार में अपनी फसल को औने-पौने दाम में बेचने की मजबूरी की जिस व्यवस्था को सरकार किसानों के हित में बताती आई है, उस व्यवस्था के चरमराने के लिए जिस स्टीमुलेंट की जरुरत थी, उसके मिल जाने का भरोसा किसानों के अंदर पैदा हो रहा है.
जातिवाद, भ्रष्टाचार और समाज को बांटकर सिर्फ राजनीति
प्रशांत किशोर की सभाओं में यह तथ्य बहुत साफ तरीके से सामने आ रहा है कि किस तरह नीतीश कुमार ने जातिवाद, भ्रष्टाचार और समाज को बांटकर सिर्फ सत्ता की राजनीति की है. जिस प्रदेश में उपजाऊ कृषि योग्य भूमि होने के बावजूद यहां के किसान गरीब हों और कर्ज में डूबने हों, यह बताता है कि उनपर सरकार की नजर कितनी टेढ़ी है.
बहरहाल, बिहार जिस राजनीतिक दलदल में धंसा हुआ है, उस राज्य के किसानों की स्थिति एक बानगी भर है. हालांकि, यह भी कहा जा सकता है कि अपनी स्थिति में बदलाव लाने की लोगों की छटपटाहट अब पहले से ज्यादा जीवंत नजर आने लगी है.