बदलाव की बयार से गाफिल है बिहार का सत्ता प्रतिष्ठान!
पटना (TBN – वरिष्ठ पत्रकार अनुभव सिन्हा की रिपोर्ट)| कुढ़नी की तरह यदि 5 दिसम्बर को पश्चिमी चम्पारण (West Champaran) के किसी भी विधानसभा सीट पर उपचुनाव हो रहा होता, तब चुनाव परिणाम कैसे होते ? सबसे ज्यादा मुश्किल में कौन सी पार्टी पड़ती और बिहार में जरूरत से ज्यादा जो राजनीतिक दल हो गए हैं, उनके समक्ष क्या विकल्प रह जाता ! यह सम्भावित बदलाव का प्रमाण है.
हालांकि अखबारों के स्थानीय संस्करण का असर सूचनाओं को प्रभावित तब नहीं कर पाता जब किसी जानकारी का असर जिला स्तर से ऊपर का हो. फिर भी यह नहीं कहा जा सकता कि यदि जन सुराज पदयात्रा (Jan Suraaj Padyatra) मुजफ्फरपुर जिले में हो चुकी होती या हो रही होती तब कुढ़नी विधानसभा उपचुनाव का परिणाम क्या होता !
5 दिसम्बर को होने वाले कुढ़नी उपचुनाव (Kudhani by-election 2022) का प्रचार चरम पर है. महागठबंधन ने इस सीट पर अपनी पूरी ताकत झोंक दी है. भाजपा की मुकम्मल तैयारी के आगे महागठबंधन (Mahagathbandhan) जरा भी कमजोर दिखना नहीं चाहता. लेकिन क्या जन सुराज पदयात्रा के जरिए जो समस्यायें और लोगों के हालात पश्चिम चम्पारण में सामने आएऔर पूर्वी चम्पारण में आ रहे हैं, मुजफ्फरपुर जिले का ग्रामीण इलाका वैसे हालात और समस्याओं से अछूता है ?
कुढ़नी के युवाओं का रोजगार की तलाश में पलायन हुआ है, किसान बदहाल हैं, उन्हें अपनी फसलों का एमएसपी दर नहीं मिलता, बच्चों की बदहाल शिक्षा पर उनके गार्जियन कोई शिकायत नहीं करते, ग्रामीण सड़कें नीतीश कुमार के दावों की चुगली करती हैं, नाकामयाबी की शिकायत झेल रही सरकार के पास बिजली के इनफ्लेटेड बिल्स का कोई जबाब नहीं है, शराबबंदी को सफल बनाने पर आमादा पुलिस की ज्यादतियां कुढ़नी के ग्रामीणों पर भारी पड़ती रही हैं, लेकिन चुनाव प्रचार में ये बातें दबी हुई हैं.
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ऐसे ही बहुत सारे मसले या मुद्दे हैं जिनपर स्टेक होल्डर्स या आम आदमी से सरकारों का कोई संवाद नहीं होता. लेकिन अब, सवाल यह है कि लोगों को लगातार गफलत में रखकर चुनाव जीतने वाले राजनीतिक दलों को सवालों का सामना करना पड़े तब कैसी सूरत सामने आयेगी ? नीर-क्षीर विवेचन और मतदान का रिश्ता कायम हो जाने में अब ज्यादा वक्त का इंतजार नहीं करना पड़ेगा. जन सुराज पदयात्रा से यह स्थिति बनती जा रही है.