‘माननीयों’ के बाद अब ‘भू-माफियाओं’ पर चला अदालत का चाबुक

पटना (वरिष्ठ पत्रकार अनुभव सिन्हा की खास रिपोर्ट)| लोकतंत्र के प्रति आस्था और न्यायालय पर पूर्ण विश्वास जताने में देश के “माननीय” पहले नम्बर पर पाए जाते हैं. लेकिन आस्था और विश्वास जताने का मतलब अलग-अलग होता है. लेकिन न्यायपालिका की चौखट पर पहुंचते ही माननीयों की अकड़ “ढीली” पड़ जाती है.
यह असलियत है विधायिका और कार्यपालिका की. वह स्वयंभू जरूर हैं पर न्याय करने का “अधिकार” उन्हें नहीं है. लेकिन वास्तविकता यह इशारा करती है कि जो दायित्व विधायिका और कार्यपालिका का है, उसे जब अदालतें निभाना शुरु कर दें, तब विधायिका और कार्यपालिका की जरूरत क्यों हो या उसे किस रूप में स्वीकार किया जाए ?
इस तरह की एक स्थिति का पर्दाफ़ाश पटना उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति संदीप कुमार की एकल पीठ में हुआ. वर्ष 2020 में कटिहार मुफस्सिल थाना क्षेत्र में हुए ट्रिपल मर्डर मामले के दो अभियुक्तों की जमानत अर्जी पर एकल पीठ सुनवाई कर रही थी. मामले की गम्भीरता को देखते हुए न्यायमूर्ति संदीप कुमार ने न सिर्फ जमानत अर्जी खारिज की बल्कि एडीज रैंक के पुलिस अधिकारी की देख-रेख में एसआईटी गठित किए जाने का आदेश भी दिया.
सीमांचल के “सूदखोरों” को कहा “गुण्डा बैंक”
मामले की गम्भीरता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि अदालत ने सीमांचल के “सूदखोरों” को “गुण्डा बैंक” करार दिया और उनकी कमर तोड़ने के लिए एसआईटी जांच का आदेश दिया. वरिष्ठ पुलिस अधिकारी एडीजी डॉ कमल किशोर सिंह की अध्यक्षता में एसआईटी गठित होगी और अपनी टीम में अपने पसंद के पुलिस अधिकारियों को रखने का अधिकार उनका अपना होगा. यानी सरकार और स्थानीय विधायकों की नहीं चलेगी.
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न्यायमूर्ति संदीप कुमार की एकल पीठ जिस जमानत अर्जी पर सुनवाई कर रही थी, वह जमीन के बदले तीन लोगों की जान लेने की भू-माफिया की दबंगयी से जुड़ा मामला था. इस मामले में मारे गए पति-पत्नी और चार साल के उनके बेटे की हत्या को कटिहार पुलिस ने आत्महत्या बताया था. जबकि, जांच में यह बात सामने आई कि 80 लाख रुपये में बिकी जमीन का पैसा जमीन मालिक को देने के बजाय उनके पूरे परिवार को ही खत्म कर दिया गया.
न्यायमूर्ति संदीप कुमार ने कहा कि कोर्ट ऐसे मामलों में चुप नहीं बैठने वाला है. दोषियों को गिरफ्तार कर कानून के तहत सजा दिलाने में पीछे नहीं रहेगा.
अब जरा सोचिए कि क्या सरकार ने ग्रामीण क्षेत्रों के जरूरतमंद लोगों की सूदखोरों/भू-माफियाओं से हिफाजत करने के लिए कभी कोई कदम उठाया ? सीमांचल का पूर्णिया तो इस मामले में कुख्यात है. पूर्णिया में भू-माफियाओं का जो रुतबा है वह सूबे के बाकी 37 जिलों में नहीं है. पूर्णिया में जिस जमीन पर भू-माफिया की नजर पड़ जाती है, जमीन मालिक मान लेता है कि उसकी जमीन उसके हाथ से निकल गई. भू-माफियाओं के ऐसे रूतबे को पूरे सीमांचल पुलिस का सहयोग और संरक्षण प्राप्त है. पर, उम्मीद की जानी चाहिए कि डॉ कमल किशोर सिंह की अध्यक्षता में गठित होने वाली एसआईटी सीमांचल के इस “कोढ़” का सटीक इलाज कर देगी.
अदालत की नजर सीमांचल में हाल के समय में हुई जमीन की खरीद-बिक्री पर भी है. क्योंकि अदालत का यह स्पष्ट निर्देश है कि ऐसी जमीनो की भी जांच हो. इस मामले का सुखद पहलू यह है कि हाईकोर्ट की नजर में एसआईटी की जांच होगी और ऐसा पाया गया है कि जब कभी ऐसा हुआ, उसके अच्छे परिणाम ही सामने आए. सूबे का चर्चित चारा घोटाला इसका बेहतर उदाहरण है. एसआईटी की जांच भी काफी महत्वपूर्ण है. इसकी सफलता का मतलब यह होगा कि एक बड़ी गन्दगी की सफाई हो जायेगी.
(उपरोक्त लेखक के निजी विचार हैं)